फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने देश के मुस्लिम प्रतिनिधियों से कहा है कि वो कट्टरपंथी इस्लाम को नष्ट करने के लिए ‘रिपब्लिकन मूल्यों के चार्टर’ को स्वीकार करें.बुधवार को राष्ट्रपति फ़्रेंच काउंसिल ऑफ़ द मुस्लिम फेथ (सीएफसीएम) के आठ नेताओं से मिले और कहा कि इसके लिए उन्हें 15 दिनों की मोहलत दी जाती है.
उनके अनुसार, इस चार्टर में दूसरे मुद्दों के अलावा दो ख़ास बातें शामिल होनी चाहिए: फ़्रांस में इस्लाम केवल एक धर्म है, कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं और
इस लिए इसमें से सियासत को हटा दिया जाए. और फ़्रांस के मुस्लिम समुदाय में किसी भी तरह के ‘विदेशी हस्तक्षेप’ पर प्रतिबंध लगाना पड़ेगा.राष्ट्रपति का कड़ा रुख पिछले महीने देश में तीन संदिग्ध इस्लामी चरमपंथी हमलों के बाद से देखने को मिल रहा है.
इन हमलों में 16 अक्टूबर को एक 47 वर्षीय शिक्षक की हत्या भी शामिल है, जिसने अपनी एक क्लास में पैग़ंबर मोहम्मद के कुछ कार्टून दिखाए थे.
मुस्लिम समुदाय में इस पर नाराज़गी जताई गई और 18 वर्षीय चेचन मूल के एक युवा ने एक शिक्षक की सिर काट कर हत्या कर दी थी.
फ़्रेंच काउंसिल ऑफ़ द मुस्लिम फेथ (सीएफसीएम) के नेताओं ने राष्ट्रपति को आश्वासन दिया है कि वो चार्टर जल्द ही तैयार कर लेंगे.
सीएफसीएम, सरकार में मुसलमानों का नेतृत्व करने वाली अकेली बड़ी संस्था है जिसे सरकारी मान्यता प्राप्त है और जिसकी स्थापना पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सार्कोज़ी ने 2003 में की थी, जब वो देश के गृह मंत्री थे. इस संस्था में मुस्लिम समुदाय की तमाम बड़ी जमातें शामिल हैं.
फ़्रांस की कुल आबादी में 10 प्रतिशत मुसलमानों की है, जो यूरोप में मुस्लिम समुदाय की सबसे बड़ी आबादी है.
फ़्रांस के अधिकतर मुस्लिम इसकी पूर्व कॉलोनी मोरक्को, ट्यूनीशिया और अल्ज़ीरिया से आकर बसे हैं. लेकिन इस समुदाय की दूसरी और तीसरी पीढ़ियाँ फ़्रांस में ही पैदा हुई हैं.
फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की कट्टरपंथी इस्लाम के ख़िलाफ़ जंग, चार्टर के बनाए जाने पर ज़ोर देने पर ही ख़त्म नहीं हो जाती है.
उन्होंने इस बैठक के कुछ घंटों के बाद एक बिल का प्रस्ताव भी रखा जिसे कई लोग विवादास्पद
बताते हैं. इस बिल के कुछ अहम पहलू इस प्रकार हैं:
धार्मिक आधार पर सार्वजनिक अधिकारियों को डराने-धमकाने वालों को कठोर दंड दिया जाएगा. बच्चों को घर में पढ़ाए जाने पर रोक लगाई जाएगी.
हर बच्चे को उसकी पहचान के लिए एक विशेष कोड नंबर दिया जाएगा ताकि इस बात पर नज़र रखी जा सके कि वो स्कूल जा रहा है या नहीं. क़ानून तोड़ने
वाले माता-पिता को छह महीने की जेल के साथ-साथ बड़े जुर्माने का भी सामना करना पड़ सकता है.
एक व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी को इस तरह से साझा करने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा जिसके कारण उन्हें उन लोगों से नुक़सान हो सकता है जो उन्हें
नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं.
दरअसल फ़्रांस में पिछले कुछ सालों से इस्लाम सब से बड़ा मुद्दा बना हुआ है. फ़्रांस का कोई सरकारी धर्म नहीं है क्योंकि ये एक सेक्युलर स्टेट है. इस सेक्युलरिज़्म को देश में laïcité या ‘लाइसीते’ कहा जाता है.
ये एक ऐसा सेक्युलरिज़्म है जिसे लेफ्ट विंग और राइट विंग दोनों ने बख़ूबी अपनाया हैं. सरकार के विचार में इस्लाम इस में पूरी तरह से फ़िट होता नज़र नहीं आता.
पिछले दो सालों से राष्ट्रपति मैक्रों फ़्रेंच इस्लाम को ‘लाइसीते के दायरे में लाने की एक ऐसी कोशिश कर रहे हैं जिसमें पिछले राष्ट्रपतियों को नाकामी मिली थी.
अमेरिका में सैन डिएगो स्टेट यूनिवर्सिटी में इस्लामी इतिहास के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर अहमत कुरू के अनुसार, राष्ट्रपति मैक्रों फ्रेंच इस्लाम की अपनी कल्पना को थोपना चाह रहे हैं और एक तरह से दोहरी पॉलिसी अपना रहे हैं.
वो कहते हैं, “फ्रांस के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन सीएफ़सीएम से मैक्रों की नई मांग, जिसमें एक रिपब्लिकन चार्टर की स्वीकृति भी शामिल है, धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है.”
प्रोसेर कुरू कहते हैं, “फ्रांस की धर्मनिरपेक्ष शक्तियों ने कैथोलिक चर्च के दबदबे को ख़त्म करके इसे विकेंद्रित करने की मांग बरसों तक की. लेकिन अब, मैक्रों, सीएफ़सीएम को पुराने चर्च जैसा दर्जा देकर इस्लाम पर इसका दबदबा स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, ये मानते हुए कि सीएफ़सीएम के फ़ैसले
सभी मस्जिदों के लिए बाध्यकारी होंगे. कैथोलिक चर्च का विकेंद्रीकरण फ्रांस का ऐतिहासिक लक्ष्य रहा है लेकिन अब इस्लाम के ऊपर सीएफ़सीएम को बिठाना एक स्पष्ट विरोधाभास है.”