आम तौर पर भोजन बनाने के लिए हम आग या इलेक्ट्रिक उपकरणों का उपयोग करते है इनके बिना भोजन बनाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि भोजन को इनके बिना भी बनाया जा सकता है वो भी पानी के अंदर तो क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे। यकीन करना मुश्किल है पर ऐसा सच में है।
एक ऐसा स्थान जहाँ पर चाय से लेकर लंगर का भोजन सब पानी में बनाया जाता है और ये बड़ी आसानी से पक भी जाता है। इस चमत्कार को देखने यहाँ पर दूर-दूर से लोग आते है।
मिनटों में बनता है भोजन
इस जगह का नाम Manikaran Sahib है। जहाँ पर एक गर्म पानी का चश्मा है। इसमें 4 (तड़का,फुल्का,कढ़ी, कढ़ा प्रसाद) तरह के भोजन को छोड़कर बाकि सभी भोजन पकाया जाता है। भोजन को पकाने के लिए मटके में रखकर उसे ऊपर से कपड़े से ढक दिया जाता है और कुछ ही देर में खाना बनकर तैयार हो जाता है।
यहाँ पर आलू, दाल-चावल बनने में 25 से 30 मिनट लगते है वहीं छोले-राजमा बनने में 2 घंटे के आसपास का समय लगता है और चाय यहाँ पर 10 मिनट के अंदर ही बनकर तैयार हो जाती है। यहाँ तैयार किये भोजन को ही मणिकर्ण साहिब में चढ़ाया जाता है और उसके बाद श्रद्धालुओं को दिया जाता है।
मणिकर्ण साहिब में 5000 से ज्यादा लोगों के रुकने कि व्यवस्था है। ये स्थान हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर भारी संख्या में हिन्दू और सिख धर्म को मानने वाले लोग आते है।
गुरुनानक जी से जुड़ी मान्यता
मान्यता है कि यहाँ पर 1574 में सिख के 10 वें गुरु गुरुनानक जी और उनके दो सेवक बाला और मरदाना आये हुए थे। इनके पास आटा था पर उसे पकाने के लिए आग नहीं थी। जिसके बाद गुरुनानक जी ने कहा कि इस जगह से पत्थर हटाओ और उन्होंने वैसा ही किया। जिसके बाद वहां से एक गर्म पानी का चश्मा निकला। इसमें उन्होंने रोटी डाली पर वो डूब गयी। जिसके बाद गुरुनानक जी ने कहा कि पहले भगवन के नाम से एक रोटी निकालो। गुरु सेवकों ने वैसा ही किया और उसके बाद उनकी रोटी बन गयी। इसे गुरुनानक जी का चमत्कार माना जाता है। वहीँ दूसरी मान्यता हिन्दू भगवन शंकर जी से जुडी हुई है।
भगवान शंकर जी से जुड़ी मान्यता
वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार भगवन शंकर जी ने 11 हजार वर्ष पहले माता पार्वती जी के साथ तपस्या कि थी। जल क्रीड़ा करते समय कान की मणि गिर गयी। जिसके बाद भगवान शंकर जी ने अपने गणों को पटल में मणि को ढूंढ़ने के लिए भेजा पर वो सफल नहीं हुए। इसके बाद नैना देवी को भगवन ने भेजा उन्होंने शेषनाग से मणि वापस करने को कहा। शेष नाग ने फुंकार मरते हुए मणि को वापस कर दिया। जिस कारन इस स्थान का नाम मणिकरण पड़ गया। इसी लिए यहाँ पर गुरूद्वारे के साथ शंकर जी का मंदिर भी है और गर्म पानी के चश्मे के पास शंकर जी की पत्थर पर बनी हुई प्रतिमा है।