भारत का वीर योद्धा Prithviraj Chauhan का जीवन परिचय | कैसे किया Mohammad Ghori का अंत

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आज इस लेख में हम Prithviraj Chauhan के बारे में जानेंगे। हम जानेंगे कि उनका जन्म कहां हुआ तथा उनके जीवन परिचय के बारे में। इसके अतिरिक्त दिल्ली में उनको किस तरीके से शासन प्राप्त हुआ। पृथ्वीराज चौहान और उनकी पत्नी संयोगिता की प्रेम कहानी, पृथ्वी राज चौहान की सेना तथा मोहम्मद गोरी (Mohammad Ghori) से उनके युद्ध के बारे में इस लेख में आज हम जानेंगे। अंत में हम पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु किस प्रकार से हुई उसके बारे में भी पता करेंगे। पृथ्वीराज चौहान के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

Prithviraj Chauhan भारत के इतिहास में वह नाम है जिसकी तुलना आज तक के किसी भी शासक के साथ नहीं की जा सकती। भारत का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान एक अविस्मरणीय नाम है। महाराज पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश के आखरी हिंदु शासक थे। जब वे मात्र 11 साल की उम्र के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था और इतनी छोटी सी उम्र में ही उन्होंने दिल्ली और अजमेर जैसे बड़े शासन को संभाला था और इनकी सीमाओं को काफी दूर तक फैलाया भी था। पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा भी कहा जाता है। 

पृथ्वीराज चौहान एक ऐसे हिंदू शासक थे जिनकी कमी कोई और हिंदू राजा नहीं पूरी कर पाया था। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही पराक्रम से परिपूर्ण योद्धा थे और उनकी कुशलता सर्वोपरि थी। शब्दभेदी बाण विद्या जोकि एक बहुत ही निपुण विद्या मानी जाती थी। वह उन्होंने अपने बाल्यकाल से ही सीख ली थी और उसका अभ्यास निरंतर करते रहे थे। 

पृथ्वीराज चौहान का जन्म और जीवन परिचय / Prithviraj chauhan birth and life history 

भारत के वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान के पिता अजमेर के शासक महाराज सोमेश्वर थे एवं उनकी माता का नाम कपूरी देवी था। पृथ्वीराज चौहान का जन्म उनके माता-पिता के विवाह के 12 वर्षों के बाद हुआ था। जिससे यह बहुत ही खलबली का विषय बना था। क्योंकि विवाह के इतने वर्ष बाद संतान का होना बड़ी बात माना जाता था तथा ऐसा किसी राजघराने में यदि हो रहा है तो निश्चित ही षड्यंत्रों  का सिलसिला भी शुरू हो गया था। राज्य में भीतर से ही उन्हें मारने के कई प्रयास हुए किंतु वह बचते चले गए।

लेकिन जब पृथ्वीराज 11 वर्ष के हुए तो उनके पिता का देहांत हो गया। जिसकी वजह से उनके ऊपर राज दरबार का सारा बोझ एवं जिम्मेदारी आ गई। लेकिन इतनी कम उम्र के होने के बावजूद उन्होंने अपने दायित्व को बहुत ही कुशलता पूर्वक निभाया और अन्य राजाओं को पराजित कर अपने राज्य को भी फैलाया। पृथ्वीराज चौहान के बचपन के एक मित्र थे जिनका नाम चंदबरदाई था जिन्हें पृथ्वीराज अपना भाई समान मानते थे चंदबरदाई तोमर  वंश में एक शासक थे अनंगपाल, वह उनकी बेटी के पुत्र थे।  चंदबरदाई आगे चलकर दिल्ली में शासक हुए और पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से ही उन्होंने पिथौरगढ़ का निर्माण किया। यह स्थान दिल्ली में आज भी पुराने किले के नाम से बना हुआ है और बहुत मशहूर भी है। 

पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली पर उत्तराधिकार/prithviraj chauhan delhi rule

Prithviraj Chauhan के पिता अजमेर के महाराज थे लेकिन उनकी माता और अजमेर की महारानी कपूरी देवी अपने पिता अंगपाल की इकलौती संतान थी।  महाराजा अंगपाल दिल्ली के शासक थे तथा उन्हें कोई पुत्र ना होने की वजह से उनके सामने या एक समस्या थी कि आगे चलकर उनका शासन आखिर कौन संभालेगा। 

पृथ्वीराज चौहान के जन्म के बाद महाराजा अंगपाल को एक उम्मीद मिली और उन्होंने अपनी पुत्री कपूरी देवी और दामाद महाराज सोमेश्वर के सामने यह इच्छा जताई कि उनका उत्तराधिकारी वह अपने नाती को बनाना चाहते हैं और दोनों की  सहमति के बाद युवराज पृथ्वीराज चौहान को अपने शासन का उत्तराधिकारी घोषित किया। जब सन 1166 में महाराज अंगपाल की मृत्यु हुई तो युवराज  पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का उत्तराधिकारी होने के नाते वहां की गद्दी सौंपी गई और उनका राज्याभिषेक हुआ। उस हिसाब से वह दिल्ली के उत्तराधिकारी और वहां के महाराज बन गए। 

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी/prithviraj chauhan wife and love story

पृथ्वीराज चौहान और रानी संयोगिता की कहानी और उनका प्रेम बहुत ही मशहूर और ना भूलने वाला विषय रहा। इन दोनों की प्रेम कहानी आज भी राजस्थान में बेहद प्रचलित है और याद की जाती है। ऐसा बताया जाता है की पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता ने सिर्फ एक दूसरे का चित्र देखकर ही एक दूसरे को पसंद कर लिया और प्रेम में पड़ गए। किंतु प्रेम में कोई रुकावट ना हो ऐसा संभव नहीं है।

संयोगिता के पिता महाराजा Jaichand पृथ्वीराज चौहान से बहुत ही ईर्ष्या भाव रखते थे और किसी भी तरीके से बस यही मौका ढूंढते रहते थे कि कैसे वह पृथ्वीराज चौहान का अपमान कर सके। क्योंकि उन्हें हरा पाना तो उनके बस में नहीं था। उन्हें बहुत ही शानदार मौका मिला पृथ्वीराज चौहान की बेज्जती करने का। यह मौका उन्होंने अपनी बेटी के स्वयंवर के बहाने निकाला। जब महाराजा जयचंद्र ने अपनी बेटी संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया तो पूरे भारत देश से विभिन्न राजाओं और युवराज को आमंत्रित किया। लेकिन भारत के सबसे बड़े वीर योद्धा Prithviraj Chauhan को नहीं बुलाया और सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने महाराजा पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति को द्वारपाल के स्थान पर रख दिया। 

परंतु पृथ्वीराज चौहान राजकुमारी संयोगिता का प्रेम अपने प्रति जान चुके थे और उन्होंने उनकी इच्छा से ही स्वयंवर में ही भरी महफिल में उनका अपहरण किया और अपने साथ दिल्ली ले गए तथा दिल्ली ले जाकर पूरी विधि विधान से इन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। इस घटना के बाद से राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच की दुश्मनी और भी ज्यादा बढ़ती चली गई। 

पृथ्वीराज चौहान की सेना / prithviraj chauhan army

 इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि पृथ्वीराज चौहान की सेना बहुत ही ज्यादा बड़ी और विशालकाय थी। उनकी सेना में 300000 सैनिक थे और 300 हाथी थे। जो उस समय में बहुत ही ज्यादा बड़ा माना जाता था और सिर्फ संख्या में ही अधिक नहीं उनकी सेना पूरी तरीके से संगठित भी थी और कुशलता से परिपूर्ण थी। यही वजह थी कि पृथ्वीराज चौहान ने बहुत सारे युद्ध जीते और अपने राज्य का विस्तार किया। किंतु मोहम्मद गोरी से द्वितीय युद्ध में वह पराजित हो गए थे जिसका कारण कुशल घुड़सवारो की कमी और महाराजा जयचंद्र की गद्दारी और अन्य राजपूत राजाओं का असहयोग भी रहा। इसी की वजह से आज भी यदि कोई धोखाधड़ी करता है तो उसके लिए यही कहावत कही जाती है कि आज भी समाज में कई सारे जयचंद्र मौजूद हैं।

पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का पहला युद्ध 

पृथ्वीराज चौहान ने हमेशा ही अपने राज्य का विस्तार करने पर ध्यान दिया और विभिन्न युद्ध करते रहे। इस बार उन्होंने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए पंजाब को चुना, किंतु उस समय पूरे पंजाब पर मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी का राज था। अतः वह पंजाब राज्य के भटिंडा से शासन करता था। पंजाब पर अपना राज्य स्थापित करने के लिए मोहम्मद गौरी को हराना बहुत जरूरी था तथा युद्ध करना ही एक विकल्प था तो इसीलिए अपने राज्य का विस्तार हेतु पंजाब पर अपना शासन स्थापित करने के लिए Prithviraj Chauhan ने अपनी विशालकाय सेना लेकर मोहम्मद गौरी के राज्य पर आक्रमण कर दिया।

इस युद्ध में सबसे पहले पृथ्वीराज चौहान ने हांसी, सरस्वती और सरहिंद पर अधिकार स्थापित कर लिया। लेकिन युद्ध के दौरान अनहिलवाड़ा में विद्रोह हो गया। जिसकी वजह से पृथ्वीराज चौहान को वहां जाना पड़ गया और उसी बीच सरहिंद पर पृथ्वीराज चौहान की सेना ने अपना कमांड खो दिया और वहां का किला छोड़ना पड़ गया। लेकिन पृथ्वीराज चौहान जब वापस लौटे तो उन्होंने बहुत ही जोर शोर से युद्ध किया और दुश्मनों को धूल चटा दी। मैदान से सैनिक डर के मारे भाग खड़े हुए, क्योंकि पृथ्वीराज चौहान जैसा कुशल योद्धा उन्होंने नहीं देखा था और वह उसके सामने टिक नहीं पाए। युद्ध में Mohammad Ghori पूरी तरीके से अधमरी हालत में हो गया था।

उसको मारने से पहले ही उसके किसी सैनिक ने उस की हालत को देखा और जख्मी हालत में घसीटता हुआ उसे किले में अंदर ले गया और सुरक्षित कर दिया। किले में अंदर जाने की वजह से उसका उपचार हो गया और वह पुनः सही हो गया। इस प्रकार से यह युद्ध परिणामहीन हीं रह गया। क्योंकि इसमें किसी की भी पराजय नहीं हो पाई। पृथ्वीराज चौहान और गौरी का प्रथम युद्ध सरहिंद किले के पास तराइन नामक क्षेत्र पर लड़ा गया था इसी वजह से इस युद्ध को तराइन का युद्ध या तराइन की लड़ाई भी कहा जाता है। 

इस युद्ध के दौरान पृथ्वीराज चौहान ने करीब 7 करोड रुपए की संपदा अर्जित कर ली थी जिसे उन्होंने अपने सभी सैनिकों में योग्यता अनुसार बांट दिया था। उस समय 7 करोड़ रुपए अर्जित कर लेना इससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह धनराशि उस समय पर कितनी ज्यादा रही होगी और इससे पृथ्वीराज चौहान के पराक्रम का अनुमान भी लगाया जा सकता है।

पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का दूसरा युद्ध 

प्रथम युद्ध होने के बाद मोहम्मद गौरी को यह तो अनुमान लग गया था कि पृथ्वीराज चौहान एक बहुत ही बड़ा शासक है और बहुत ही वीर योद्धा है। जिसे हरा पाना नामुमकिन के समान ही हैं। वह अपने पिछले युद्ध की स्थिति को लेकर बदला तो लेना चाहता था किंतु उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि पृथ्वीराज चौहान को हराने के लिए क्या तरीका अपनाया जाए। वहीं दूसरी तरफ राजा जयचंद के मन में अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर के दौरान पृथ्वीराज चौहान द्वारा अपहरण को लेकर पृथ्वीराज चौहान के प्रति बहुत ही ज्यादा कड़वाहट आ गई थी और उन्होंने अपने ही दामाद को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बना लिया।

उन्होंने अन्य राजपूत शासकों को भी पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध बहुत भड़काया तथा उनके विरुद्ध कर दिया। इसके बाद जब राजा जयचंद को यह पता चला कि मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच युद्ध हुआ तब राजा जयचंद को पृथ्वीराज चौहान को हराने की एक तरकीब सूझी। राजा जयचंद ने Mohammad Ghori के साथ मिलकर पृथ्वीराज चौहान को हराने का खेल रचाया और दोनों ने मिलकर 2 साल के बाद सन 1192 में पृथ्वीराज चौहान के राज्य में आक्रमण कर दिया। यह युद्ध भी तराइन के मैदान पर ही हुआ।

इस युद्ध को तराइन का दूसरा युद्ध कहा जाता है जो कि मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच लड़ा गया था।  इस युद्ध में जब पृथ्वीराज चौहान ने और उनके मित्र चंदबरदाई ने देश के और हिंदू राजपूत राजाओं से मदद मांगी तो उन सब ने मना कर दिया क्योंकि संयोगिता के स्वयंवर के दौरान पृथ्वीराज चौहान का जो बर्ताव उन सब ने देखा उसके बाद से कोई भी उन्हें पसंद नहीं करता था और Raja Jaichand ने काफी हद तक उन सब को भड़का भी रखा था। इसी वजह से कोई भी राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान की मदद के लिए आगे नहीं आया।

इस परिस्थिति में Prithviraj Chauhan और चंदबरदाई अकेले पड़ गए और उन्होंने अपनी तीन लाख की सेना के साथ ही मोहम्मद गोरी की सेना का सामना किया। इस बार राजा जयचंद के बताने पर मोहम्मद गोरी को पता था कि पृथ्वीराज चौहान की सेना की क्या कमी है। जिसका फायदा उठाते हुए मोहम्मद गोरी ने अपने सेना में अच्छे घुड़सवार रखें और पृथ्वीराज चौहान की सेना को चारों दिशाओं से घेर लिया।

इस स्थिति में पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना एक ही जगह अटके रह गए और पीछे से जयचंद्र के सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान के राजपूत सैनिकों का ही वध करना शुरू कर दिया और इस प्रकार से पृथ्वीराज चौहान की इस युद्ध में हार हो गई। युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया और उनका दिल्ली अजमेर का शासन भी छिन गया। 

इसके बाद राजा जयचंद को भी उसकी गद्दारी का परिणाम मिला और उनकी भी हत्या कर दी गई। इस प्रकार से मोहम्मद गोरी ने पूरे पंजाब, दिल्ली, अजमेर और कन्नौज पर अपना शासन स्थापित कर लिया। इस समय के बाद से ही अथवा इस युद्ध के बाद से भारत में ऐसा कोई भी राजा नहीं हो पाया जो पृथ्वीराज चौहान के समान अपनी वीरता सिद्ध कर पाया हो। यदि Jaichand ने गद्दारी ना की होती तो ऐसा संभव था कि इस युद्ध में भी महाराज पृथ्वीराज चौहान की ही विजय हुई होती और वह भारत में अपना राज्य और बढ़ा चुके होते। 

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु 

मोहम्मद गोरी से युद्ध में हार जाने के बाद जब पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र chandbardai को बंदी बनाकर गोरी के राज्य में ले जाया गया। तब वहां उनको जेल में विभिन्न प्रकार की यातनाएं दी गई। जिसमें सबसे दर्दनाक थी उनकी आंखों में गर्म लोहे की सरिया डालने की। जिसकी वजह से उनकी आंखों की रोशनी चली गई। लेकिन पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु से पहले जब सभा में उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तब उन्होंने अपनी सीखी हुई विद्या शब्दभेदी बाण की विद्या को इस्तेमाल करने की इच्छा जताई।

इसी के लिए चंदबरदाई ने सभा में दोहा बोला “चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान” इसे सुनकर पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण मोहमद गौरी की तरफ छोड़ दिया। जब तक कोई कुछ समझ पाता कि Chandbardai ने क्या बोला और पृथ्वीराज ने कहाँ बाण छोड़ा तबतक Mohammad Ghori के गले से तीर आरपार हो चूका था। इसके बाद अपनी दुर्गति होने से बचाने के लिए दोनों (चंदबरदाई, पृथ्वीराज) ने एक दूसरे का जीवन भी समाप्त कर दिया। पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु की खबर जब महारानी संयोगिता के पास पहुंची तो उन्होंने भी अजमेर के किले में अपना जीवन समाप्त कर लिया।

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निष्कर्ष– इस लेख से हमने भारत का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान के बारे में जाना। साथ ही यह भी जाना कि कैसे उन्होने अपने कुशल नेत्रत्व और वीरता से राज किया। इसके साथ ही हमने prithviraj chauhan birth, prithviraj chauhan wife, love story, life और death के बारे में जाना।

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