जब अमेरिका में 14 साल के बच्चे को 10 मिनट में दी गई मौत सजा, जानें क्यों ?

George Junius Steinie
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आजकल हमारे देश में कुछ अपराधों को लेकर जनता जल्द से जल्द फांसी की सजा की मांग कर रही है। ऐसा ही एक अपराध इस समय बहुत ही ज्यादा सुर्ख़ियों में बना हुआ है वो है निर्भया केस इस केस में बलात्कारियों को 7 साल हो गए फांसी मिलते मिलते लेकिन अभी तक निर्भया को न्याय नहीं मिला। जबकि इन सारे अपराधियों का गुनाह भी साबित हो चूका है।

क्या सरकार बलात्कारियों को पाल रही है ?

हमारी जो सरकार है न उसके बारे में हम ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहते कहेंगे रो बस यही की शायद इनकी आदत हो गई है बलात्कारियों को जेल में बैठा कर खिलने की अगर ये सरकार चाहे तो एक गुनहगार को उसका गुनाह काबुल कराकर रातो -रात उसको सजा दे सकती है। यह बात हम इसलिए दावे के साथ कह सकते है। क्योकि ऐसी ही एक घटना है जिसमें एक नाबालिक 14 साल के बच्चे को 10 मिनट के अंदर सजाय मौत दी गई थी। तो इससे एक बात तो साफ है की सरकार के हाथ में होता तो बहुत कुछ है। अब आप सोच रहे होंगे की आखिर वह बच्चा कौन है और उसको मौत की सजा क्यों दी गई तो आइये जानते है इसके पीछे का कारण।

जानें कौन है वह बच्चा

दरअसल ये कहानी अमेरिका की है न की हमारे देश भारत की आपको बता दूँ की आज अमेरिका पूरी दुनिया को मानवाधिकार पर बड़े-बड़े ज्ञान देता है और दूसरे देशों को बहुत सिखाता है। लेकिन 16 जून साल 1944 में एक 14 साल के अश्वेत बच्चे जार्ज जूनियस स्टीनी को मात्र 10 मिनट में जज ने फैसला सुनाकर सजा-ए-मौत दे दिया।14 साल का बच्चा अश्वेत था और जज एक गोरा यानी श्वेत था और वह जज ही नहीं इस जूरी में सारे के सारे जज श्वेत थे और उस बच्चे को इलेक्ट्रिक चेयर से बांधकर मौत के घाट उतार दिया गया था।और आप यह जानकर चौक जाएंगे इलेक्ट्रिक चेयर उसके कद से छोटी थी तो उसे किताबों के गट्ठर पर बैठाकर मारा गया।

क्या कोई सरकार 10 मिनट में सजा दे सकती है ?

किसी भी देश में अगर कोई सरकार किसी को 1 महीने की भी सजा देती है तो उसका भी एक पूरा कानूनी प्रक्रिया होता है अदालत बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष दोनों पक्षों को सुनती है तमाम सबूतों को देखती है फिर उसके बाद किसी को सजा देती है। और मौत जैसी सजा में तो अदालतें और भी विशेष ध्यान देती हैं हर पहलू को देखा जाता है। इतना ही नहीं यदि अपराधी का गुनाह अदालत में साबित भी हो जाता है तो भी उसके पास दया मांगने का विकल्प रहता है और बहुत से देशों में बहुत देशों के राष्ट्रपतियों ने दया के आधार पर फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला है।14 साल के इस बच्चे का नाम जॉर्ज जूनियस स्टीनी था जिस पर दो लड़कियों के मर्डर का आरोप था।जार्ज अफ्रीकन अमेरिकन था यानी अश्वेत था जो साउथ कैरोलिना में रहता था।

जानें किस बात पर बच्चे को दी गई सजा

23 मार्च 1944 को 13 साल की लड़की बैटी जून विनीकर और 8 साल की मेरीआमा थामस अपनी साइकिल लेकर एक खास फूल को ढूंढते हुए उसके घर तक आए जहां पर उन्हें जार्ज मिला।उन दोनों लड़कियों ने जार्ज और उसकी बहन कैथरीन से खास फूल के बारे में पूछा और जॉर्ज स्टीनी उन दोनों लड़कियों के साथ मदद के लिए चला गया।जिसके बाद वह दोनों लड़कियां गायब हो गई।

निर्भया केस के दोषियों की फांसी टलने पर भड़के Rishi Kapoor

अगली सुबह बैटी और मेरी की लाश कीचड़ में मिली। दोनों के सिर पर चोट लगी थी।कुछ ही घंटों बाद पुलिस ने जार्ज को गिरफ्तार करके घंटों पूछताछ किया।जार्ज को अरेस्ट करने वाले क्लायडन काउंटी डिप्टी ऑफिसर एच एस न्यूमैंन ने लिखित बयान दिया कि जॉर्ज ने अपनी गलती मान ली है। जबकि जार्ज के बयान के पर उसके सिग्नेचर या उंगलियों के निशान नहीं थे। जॉर्ज को कोलंबिया के जेल में 3 महीने तक कैद रखा गया। जहां उसकी फैमिली को उससे मिलने नहीं दिया गया इतना ही नहीं चार्ज के पिता को नौकरी से निकाल दिया गया।

पूरी फैमिली को तुरंत घर खाली करना पड़ा जो उन्हें कंपनी की तरफ से मिला था। जार्ज लगभग 3 महीने जेल में रहा और सिर्फ एक बार सुनवाई हुई वह भी सिर्फ 10 मिनट तक। कोर्ट की तरफ से जार्ज के लिए एक वकील चाल्स फ्लोडन को दिया गया था लेकिन वह खुद राजनीति में थे इसलिए वह सिर्फ एक दलील दिए कि जॉर्ज के साथ एडल्ट की तरह ट्रीट नहीं करना चाहिए जबकि उस समय अमेरिका में 14 साल से बड़े बच्चे को एडल्ट माना जाता था जिसकी वजह से वह पूरा तर्क रिजेक्ट हो गया।

ज्यूरी में सारे के सारे मेम्बर जज स्वेत थे। कोर्ट रूम के अंदर एक हजार से ज्यादा लोग थे लेकिन किसी भी अश्वेत को अंदर जाने नहीं दिया गया था।गवाह के तौर पर सिर्फ 3 लोगों को बुलाया गया था जिसमें से एक वो था जिसने लड़कियों की लाश खोजी थी और 2 डॉक्टर थे जिन्होंने पोस्टमार्टम किया था। पोस्टमार्टम में यह साबित हो चुका था कि बच्चियों का रेप नहीं किया गया था।

अपील के बावजूद भी नहीं दी गई रियायत

फिर 10 मिनट के बाद पूरी ज्यूरी ने जॉर्ज जूनियस स्टिनी को सजा-ए-मौत सुना दी और उसे इलेक्ट्रिक चेयर पर बिठाकर हाई वोल्टेज क के द्वारा मारने का आदेश दिया गया। सजा होने के बाद ट्रायल के लिए कोई अपील नहीं हुई थी।जॉर्ज के माता-पिता ने जॉर्ज की उम्र का हवाला देकर गवर्नर से अपील किया कि उसके साथ रियायत बरती जाए लेकिन गवर्नर ने रियायत देने से इनकार कर दिया।

कब दी गई मौत की सजा

फिर 16 जून 1944 को सुबह 7:00 बजे 5 फीट 1 इंच के जार्ज को इलेक्ट्रिक चेयर पर बाधा गया। क्योंकि जॉर्ज उस समय बहुत छोटा था और चेयर पर फिट नहीं हो रहा था जिसकी वजह से उसे किताबों के ऊपर बिठाया गया था कि वह कुर्सी पर फिट हो सके।कुर्सी में बैठे हुए जार्ज के हाथ में बाइबल थी और फिर उसे करंट दिया गया और बाईबल नीचे गिर गई।इस तरह जार्ज की दर्दनाक मौत हो गई।मौत के दिन उसे जब इलेक्ट्रिक चेयर पर बाधा गया था। तब एक पादरी ने आकर उसके लिए आखिरी प्रार्थना की उसके बाद उसकी देह में 2400 वोल्ट बिजली दौड़ा दी गई।

इससे उसके चेहरे पर से मास्क गिर गया और हाई वोल्टेज से उसकी आंखें बाहर आ गई थी जिसे बड़ा डरावना दृश्य हो गया था। फिर उसके मुंह को तौलिए से ढक दिया गया। लेकिन बिजली के कारण तोलिए ने भी आग पकड़ ली थी दो बार और बिजली के झटके दिए गए और कुल 4 मिनट में जार्ज स्टीनी ने प्राण त्याग दिए।इस कानूनी मर्डर के बाद जार्ज स्टीनी अमेरिका में मौत की सजा पाने वाला सबसे कम उम्र का व्यक्ति बना। मैं आपको एक युटुब वीडियो का लिंक दे रहा हूं इसमें जॉर्ज की मौत की प्रक्रिया को दिखाया गया है यह वीडियो जॉर्ज स्टीनी के ऊपर बनी फिल्म से लिया गया है।

वह बच्चा बेगुनाह था

लेकिन जॉर्ज स्टीनी के मौत के बाद अमेरिका की अश्वेत लाबी कई दशकों तक संघर्ष करती रही कि जॉर्ज स्टिनी का केस फिर से खोला जाए क्योकि जॉर्ज निर्दोष था। उसकी स्टेट की तरफ से हत्या की गई है।2014 में जॉर्ज स्टिनी केस को फिर से खोला गया और नए सिरे से सुनवाई हुई और कई वैज्ञानिक ढंग से जांच हुई फिर 2018 को पूरी जांच और सुनवाई के बाद अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि जॉर्ज स्टिनी निर्दोष था। उसे भले ही फांसी दी गई हो लेकिन उसकी फांसी को एक अदालत द्वारा हत्या करार दिया जाता है।आज अगर जॉर्ज स्टिनी जिंदा होता तो 84 साल का होता और खुद को निर्दोष सुनकर बेहद खुश होता।खैर जॉर्ज की आत्मा जहां भी हो उसे शांति मिले क्योंकि उसके ऊपर जो लांछन लगाया गया उस लांछन से उसे मुक्ति मिल चुकी है।

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