कार्तिक मास में दीपावली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा मनाया जाता है। इस दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही दिवाली के अगले दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपने गोकुल वासियों को जब इंद्र भगवान ने भरी बारिस से अकाल ला रूप दिखाया था तब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली से उठाकर उनकी रक्षा की थी तभी से गोकुल वासी कृष्ण के सम्मान में गायों की पूजा करने लगे आज भी हमारे जीवन में गायों का विशेष महत्व है। आज भी गायों के द्वारा दिया जाने वाला दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है।
दीपावली पर क्यों करते माँ लक्ष्मी और गणपति की पूजा
यूं तो आज गोवर्धन ब्रज की छोटी पहाड़ी है, किन्तु इसे गिरिराज (अर्थात पर्वतों का राजा) कहा जाता है। इसे यह महत्व या ऐसी संज्ञा इस लिये प्राप्त है क्यूंकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष है। उस समय की यमुना नदी जहाँ समय-समय पर अपनी धारा बदलती रही है, वहां गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रुप में विद्द्मान है। इसे भगवान कृष्ण का स्वरुप और उनका प्रतीक भी माना जाता है और इसी रुप में इसकी पूजा भी की जाती है।
गोवर्धन पूजा की विधि
- इस दिन प्रातः स्नान करके पूजा स्थल पर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाना चाहिए
- इस पर्वत पर श्रद्धापूर्वक अक्षत,चंदन,फल , फूल आदि चढ़ाना चाहिए
- पर्वत के सामने दीप जलाना चाहिए तथा पकवानों के साथ श्रीकृष्ण प्रतिमा की भी पूजा करनी चाहिए
- इसके बाद पकवान जैसे गुड़ से बनी खीर, पुरी, चने की दाल और गुड़ का भोग लगाकर गाय को खिलाना चाहिए
- पूजा के पश्चात परिवार के सभी सदस्यों को भी भोग लगे हुए प्रसाद को ही सबसे पहले खाना चाहिए