करवा चौथ साल के कार्तिक माह और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है और शाम के समय इसकी पूजा होती है और ये दीपावली से लगभग 9–10 दिन पहले आता है।
करवा चौथ व्रत केवल विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
करवा चौथ व्रत क्यों मनाया जाता है?
करवा चौथ का व्रत सबसे पहले माता पार्वती अपने पति के लिए किया था जब उन्होंने शिव जी को अपना पति मानी थी , उनके लम्बे आयु और सुख के लिए रखा था उनकी यह तप और कठिन व्रत को देख कर शिव जी ने उन्हें अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया था। तभी से यह व्रत हर विवाहिक महिलाये रहती है अपने पति के लम्बी उम्र के लिए और अपने परिवार के सुख शांति के लिए।
करवा चौथ व्रत का नियम और विधि?
इस दिन सुबह जल्दी उठ कर नाहाती है और फिर सूर्य देव को जल देती है और फिर पुरे दिन निर्जला व्रत के लिए संकल्प लेती है व्रत में विवाहिक महिलाये सोलह सिंगर करती है और नये कपडे हाथो में मेहँदी लगती है महिलाये दिन भर बिना कुछ खाये पिए रहती है शाम को करवा माता का पूजा करती है और मिट्टी का करवा लेती है और उसमे गंगाजल मिला जल भारती और थोड़े से चावल और एक सिक्का दाल देती है। दूसरे करवा में अनाज और अन्य चीजे रखती है और फिर सभी महिलाये कथा सुनती है चाँद को देख कर जल चढ़ा कर चलनी में दीपक रख कर पूजा करती है और फिर अपने पति के हाथो से पानी पिकर अपना व्रत खोलती है।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का व्रत न केवल हमारे धार्मिक आस्था तक ही नहीं बल्कि यह पति -पत्नी के बिच के सम्बन्द को मजबूत करने के साथ दोनों के रिश्तो में प्रेम, विश्वास सभी का प्रतीक माना जाता है। इस व्रत से हम सभी को यह सिख मिलती है की रिश्तो में श्रद्धा और सच्चे मन की भावना सबसे महत्वपूर्ण होनी चाहिए और आधुनिक समय में भी इस व्रत को ऐसी आस्था के साथ होनी चाहिए और पत्निया ही नहीं बल्कि कई पति भी अपनी पत्नी के साथ इस व्रत को रखते है।
निष्कर्ष
उम्मीद करते है आप को पता ही होगा की हमारे भारतीय संस्कृत में नारी की आस्था और प्रेम और अपने पति के साथ अपने परिवार के लिए क्या कुछ कर सकती है और यह व्रत न केवल पति -पत्नी के रिश्तो को ही नहीं गहरा करता है बल्कि परिवार में भी प्रेम और एकता का सन्देश भी देती है
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