बंगाल इन दिनों चुनाव के रंगों में साराबोर है। चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। सभी राजनैतिक पार्टियाँ बंगाल में अपना जोर दिखने को तैयार हैं। बात करें यदि दो प्रमुख पार्टियों की जिनपर जनता की नज़रें अधिक रहने वाली हैं तो एक तरफ़ है 2011 लगातार सत्ता पर काबिज़ टीएमसी जिसे इस बार एन्टीइन्कम्बेंसी का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन ममता बनर्जी की आक्रामकता में कोई कमी नहीं आई है। वो पिछले लोकसभा चुनाव से बीजेपी पर लगातार हमलावर रही हैं। हालाँकि चुनाव से ठीक पहले कई टीएमसी नेता बीजेपी का दामन थाम रहे हैं लेकिन इससे दीदी के तेवरों में कोई नर्मी नहीं दिखी और न ही उन्हें इस बात का कोई मलाल है।
वहीं दूसरी ओर है बीजेपी जो बंगाल में अपने पैर ज़माने की कोशिशों को सफल बनाने के प्रयासों में जी जान से जुटी है। हाल ही में हुए ग्रेटर हैदराबाद नगर निकम चुनावों एवम जम्मू कश्मीर में हुए DDC चुनाव में मिली जीत से बीजेपी का मनोबल बढ़ा है। बीजेपी इस के क्रम को लगातार बनाये रखना चाहती है।
बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व पिछले कई महीनों से बंगाल में मौजूद है। सभी बड़े नेता राज्य में घूमकर पार्टी का माहौल बना रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह लोगों के घर जाकर जमीन पर बैठ कर भोजन कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले मीडिया के गलियारों में सौरव गांगुली के नाम बीजेपी के मुख्यमंत्री कैंडिडेट के रूप में खूब उछला। इस ख़बर से भी बीजेपी को ख़ूब प्रचार मिला। कुलमिलाकर इस बार बीजेपी बंगाल में कोई कसर नहीं रखना चाहती।
तीसरी ओर है असुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM जो बिहार चुनाव में मिली जीत से अत्यंत उत्साहित है। बंगाल के चुनाव से उन्हें बड़ी अपेक्षाएं हैं। हालाँकि कि ओवैसी एवम उनकी पार्टी ने गठबंधन पहल करते हुए दीदी की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था लेकिन दीदी ने ओवैसी अंगूठा दिखा दिया। बंगाल में AIMIM के अध्यक्ष जमीरउल हसन के मुताबिक अब उनकी पार्टी अन्य छोटी-मोटी पार्टियों के संपर्क में है जिनके साथ गठबंधन कर वो बंगाल के चुनाव में अपने प्रतिद्वंदियों के सामने एक मजबूत चुनौती पेश करेंगे। हसन ने दावा किया कि वो चुनाव को एक त्रिकोणीय मुकाबला बनायेंगे।
कई साल तक राज्य की सत्ता का सुख भोगने वाली लेफ्ट जिसकी सियासत के लिए बंगाल की मिट्टी सबसे ज्यादा उपजाऊ रही है आज हाशिए के कगार पर है।
देश की सत्ता पर कई साल राज्य करने वाली कांग्रेस भी बंगाल में अपनी वर्षों पुरानी राजनैतिक जमीन तलाशने की असफल कोशिशों में लगी हुई है।
लेकिन इन दोनों पार्टियों में एकमतता की कमी व नेतृत्व के आभाव में जनता इन्हें एक कमजोर विकल्प के रूप में देख रही है।