मशहूर तेलगू कवि एवं वरिष्ठ तेलगू साहित्यकार ‘वरवर राव’ जो भीमा कोरेगाँव हिंसा के मामले में कथित रूप से मुंबई की एक जेल में बंद हैं। स्वास्थ कारणों के चलते बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें ‘नानावटी’ अस्पताल में इलाज़ कराने की सशर्त अनुमति से दी है। इस दौरान परिवार के लोग श्री राव से मुलाकात कर सकते हैं किंतु सदस्यों को श्री राव से मिलते समय अस्पताल के मापदंडों ख़ासा ख़्याल रखना होगा।
कौन है वरवर राव ?
वरवर राव एक तमिल विद्वान, विचारक, साहित्यकार , शिक्षक, लेख़क, कवि, आलोचक एवम प्रखर वक्ता रहे हैं।
इनका जन्म 3 नवंबर 1940 को “Chinna Pendyala” नामक गाँव में हुआ था। जो Warangal ज़िले के अंतर्गत आता है।
शुरूआती शिक्षा गृहनगर में हुई। उसके बाद उन्होंने हैदराबाद की राह पकड़ी।
Osmania University. से तमिल साहित्य में परा-स्नातक की डिग्री पूर्ण करने के बाद वरवर राव ने एक साथ दो निज़ी विद्यालयों में शिक्षण कार्य शरू कर दिया।
बाद में में भारत सरकार ने उन्हें सूचना एवं प्रसारण विभाग में सहायक प्रकाशक के पद पर नियुक्त कर दिया।
1998 में शिक्षक के पद से सेवानिवृत हो गये।
‘वरवर राव’ एक शिक्षक के रूप में !
वरवर राव को निर्विवादरूप से तमिल साहित्य में अभी तक का सबसे तार्किक आलोचक व गुणी शिक्षक माना जाता है। उन्होंने लगातार 40 वर्षों तक स्नातक व परास्नातक के विद्यार्थियों को पढ़ाया है।
वर्ष 1966 में राव ने Saahithee Mithrulu नामक समूह की स्थापना की। हिंदी में इसका अर्थ होता है ( साहित्य मित्र ) यह समूह एक त्रैमासिक पत्रिका पत्रिका निकालता था जिसका नाम था Srujana . पत्रिका की बेशुमार लोकप्रियता के कारण वर्ष 1970 से इसका मासिक संकलन निकलना शुरू हो गया।
इस पत्रिका के अंतर्गत मुख्यत: नौजवान लेखकों की कवितायें व उनके लेख़ प्रकाशित किये जाते थे।
1966 से 1992 तक Srujana का प्रकाशन अनवरत चलता रहा। बाद में इसका नाम बदल कर इसे Aruntara कर दिया गया। राव कुछ प्रमुख तमिल लेखकों के समूह के साथ मिलकर कविताओं,कहानियों व अन्य साहित्यिक विधाओं पर लिखे लेख स्वप्रकाशित कर उनकी प्रतियाँ सीधे दुकानदारों तक पंहुचाते थे।
“कवि वरवर राव”
1950 की शुरुआत में ही वरवर राव की कवितायें स्थानीय भाषा की पत्रिकाओं में छपनी शुरू हो गयीं थी। उनका प्रथम स्वतन्त्र कविता संग्रह Chali Negallu ( शिविर में आग ) वर्ष 1968 में छपा था।
कई चुनिंदा कवियों व लेखकों को संपादित करने के साथ साथ वरवर राव ने स्वतंत्र रूप से 15 मौलिक कविता संग्रह प्रकाशित किये हैं।
प्रकार से हैं।
1 – Chali Negallu (Camp Fires, 1968), 2 – Jeevanaadi (Pulse, 1970), 3 – Ooregimpu (Procession, 1973), 4 – Swechcha (Freedom, 1978),
5- Samudram (Sea, 1983), 6 – Bhavishyathu Chitrapatam (Portrait of the Future, 1986), 7 – Muktakantam (Free Throat, 1990),
8 – Aa Rojulu (Those Days, 1998), 9 – Unnadedo Unnattu (As it is, 2000), 10 – Dagdhamauthunna Bagdad (Burning Bagdad, 2003), 11 – Mounam Oka Yuddhaneram (Silence is a War Crime, 2003), 12 – Antassootram (Undercurrent, 2006), 13 -Telangana Veeragatha (Legend of Telangana, 2007), 14 – Palapitta Paata (Song of Palapitta, 2007) and Beejabhoomi (Field of Seeds, 2014). In 2008, 15 – an anthology of selected poetry by Rao, titled Varavara Rao Kavitvam (1957-2007), (Varavara Rao’s Poetry)
वरवर राव की कविताओं का अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है।
हैदराबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी व विदेशी भाषाओं के प्रोफ़ेसर Dr. D Venkat Rao ने वरवर राव की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया है।
तेलगू में लिखा इनका उपन्यास Telangana Liberation Struggle साहित्य और समाज के बीच के सम्बन्ध पर प्रकाश डालता है। माना जाता है तेलगू भाषा में उपलब्ध यह अब तक का सबसे उन्नत मार्क्सवादी साहित्य है।
1986 में वरवर राव के एक कविता संग्रह Bhavishyathu Chitrapatam (Portrait of the Future) को तात्कालिक आंध्र प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था।
अपने जेल के दिनों में भी वरवर राव सक्रिय लेखन करते रहे इस दौरान उन्होंने जेल के भीतर से Sahacharulu नामक पत्रिका का संपादन किया।
आपातकाल के दौरान भी वरवर राव जेल में थे और वहीं से अपने लेखन के दम पर लोगों में संघर्ष की भावना जगाते थे।