आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है। दुनिया के लगभग देश किसी न किसी तरह के अतिवाद से पीड़ित है। अतिवाद आतंकवाद का ही एक स्वरूप है।
आतंकवाद अधिकतर ऐसे देशों में पनपता है जहाँ अशिक्षा,भुखमरी और बेरोज़गारी है, जहाँ सरकारें भ्रष्ट हैं और सत्ता पर बैठे लोग अपनी तिजोरियाँ भरते हैं।
ज्यादातर अफ़्रीकी देश आतंकवाद की समस्या से ग्रसित वहाँ आये दिन लोगों का नरसंहार होता रहता है।
टेररिज्म इन एशिया
बात करें एशिया की तो पाकिस्तान और अफगानिस्तान मानचित्र पर दो ऐसे देश हैं जहाँ आतंकवाद को भरपूर पोषण,समर्थन,व फंडिंग मिलती है। जिसकी बदौलत वो पडोशी देशों में जाकर वहाँ की शांतिव्यवस्था को भंग करते हैं तथा वहाँ दहशत का माहौल तैयार करते हैं। लेकिन आतंकवादी पैदा करने वाले ये देश जितना अपने पड़ोसी मुल्कों का नुकसान करते हैं उसका कई गुना ज़्यादा नुकसान वो खुद का करते हैं। यही कारण है पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देश आज भुखमरी के कगार पर खड़े हैं। आतंकवाद को अपनी जमीन पे पनपने देने की कीमत उन्हें अपनी अर्थव्यवथा को चौपट करके चुकानी पड़ रही है।
यह तो हुआ एक पक्ष आइये इसके दूसरे पक्ष को समझने की कोशिश करते हैं।
9 /11 के हमले के बाद से आजा तक अमेरिका पर कोई दूसरा आतंकवादी हमला नहीं हुआ। इसका सबसे बड़ा कारण है आतंकवाद पर अमेरिका की जीरो टॉलरेन्स की नीति। 9 /11 के मुख्य दोषी ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने पाकिस्तान में घुस कर मारा था। अमेरिका सहित अन्य बड़े ताकतवर देश यदि चाहें तो एक झटके में पूरी दुनिया से आतंकवाद का सफाया हो जाये। लेकिन नहीं यदि पूरी दुनिया में शांति फ़ैल जाएगी तो हथियार कैसे बिकेंगे ? और कौन खरीदेगा फाइटर प्लेन्स ? और यदि हथियार नहीं बिकेंगे तो इन विकसित देशों की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी।
सोवित-अफ़ग़ान युद्ध
सोवियत-अफगान युद्ध के समय पाकिस्तान अमेरिका का प्रमुख विश्वाशपात्र हुआ करता था। पाकिस्तान का इस्तेमाल करके अमेरिका अफ़ग़निस्तान को सोवियत संघ से युद्ध के दौरान आधुनिक हथियारों की सप्लाई करता था। या कहें कि अमेरिका अप्रत्यक्ष रूप से सोवियत संघ से जंग लड़ रहा था। अमेरिका की उपस्थिति के कारण यह युद्ध दो दशक लंबा चला और बिना किसी नतीजे के ख़त्म हो गया।
युद्ध के इस दो दशकों के दौरान अफ़गानी लोग अपनी संतानो को शिक्षा व सुरक्षा की दृष्टि से पाकिस्तान भेज देते थे। पाकिस्तान आने के बाद उनका ठिकाना होते थे इस्लामिक मदरसे। इन मदरसों में basically इस्लामिक एजुकेशन दी जाती थी। जहाँ उन्हें बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग़ थलग रखा जाता था। इन मदरसों में पढ़ रहे अफ़गानी विद्यार्थियों को बर्बरता और कट्टरता की ट्रेनिंग दी जाती थी। यहाँ से निकले के बाद वो अफगानिस्तान वापस जाकर सोवियत संघ के साथ युद्ध में जुट जाते थे। बाद में इन लड़ाकों के ग्रुप को तालिबान नाम से जाना गया।
अमेरिका इफ़ेक्ट
1992 सोवियत संघ से युद्ध ख़त्म होने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता को लेकर गृह युद्ध छिड़ गया। 1996 तालिबानी लड़ाके अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर काबिज़ हो गए। सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में शरिया क़ानून लागू कर दिया। 2001 में अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की एंट्री होती है अमेरिका ने तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता से उखाड़ फेंका और एक नई सरकार का गठन किया। फिर धीरे-धीरे अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से बाहर चला गया। अफ़ग़ानिस्तान में अभी भी अमेरिका समर्थित राष्ट्रपति है। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के आधे हिस्से पर अभी भी तालिबान का कब्ज़ा है।