उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर में कोनी गांव के निवासियों ने अपने गांव में मोरों को बचाने के लिए एक पहल शुरू की है। इस गांव में मोरों का दिखाई देना एक आम बात है। वन विभाग ने 2 फरवरी को एक कार्यक्रम आयोजित किया था और गांव के निवासियों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें प्रशंसा पत्र के साथ सम्मानित किया था।
जनपद गोरखपुर में मुख्य वन संरक्षक बीसी ब्रह्मा का कहना है कि “1998 में बाढ़ में बहे कुछ मोरों को स्थानीय लोगों द्वारा इस क्षेत्र में पहुंचने के बाद बचाया गया था। आज आपको यहाँ कम से कम 75-80 मोर मिलेंगे। हम यहां तालाबों को विकसित करना चाहते हैं और इन पक्षियों को सुरक्षित आश्रय देना चाहते हैं”।
BC Brahma, Chief Conservator of forests, Gorakhpur: In 1998 some peacocks, washed away in flood, were saved by locals after they reached this area. Today you'll find at least 75-80 peacocks here. We want to develop the ponds here and provide a safe haven to these birds. (07.02) https://t.co/TvS0i4girp pic.twitter.com/rI0uZGRrNX
— ANI UP (@ANINewsUP) February 7, 2020
सरकार ने BRD गोरखपुर मौतों पर नहीं दिया जवाब, हाईकोर्ट नाराज़
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के जिला मुख्यालय से केवल 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खोराबार ब्लाक के कोनी गांव को ‘मोर वाले गांव’ के रूप में भी पहचाना जाता है। इस गांव में मोर और उनके बच्चे बिंदास अंदाज में खेत-खलिहान, घर की मुंडेर और छत पर नाचते-झूमते आसानी से नज़र आ जाएंगे। इस गांव में शायद ही कोई घर ऐसा हो जिसके यहाँ मोर के पंख न मिलें। गांव में कोई भी मोर को पिंजड़े में नहीं रखता है और न ही उनको पालता है। इस गांव से अगर कोई मोर बाहर चला जाता है तो वह वापस भी खुद ही आ जाता है।
कोनी की एक 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला शैलेष पाण्डेय का कहना है कि 1998 की बाढ़ में दो जोड़े मोर यहाँ आ गए थे और तब से वह इसी गांव में हैं। उन्होने बताया कि यह गांव ब्राह्मणों का गांव हैं इसलिए इन मोरों को कोई मारता भी नहीं है। इसी गांव के 25 वर्षीय नितीश पाण्डेय ने बताया कि इस गांव में मोरों को कोई मारता नहीं है। एक बार दूसरे गांव के कुछ लड़कों ने मोर को मार दिया तो गांव के लोगों ने उनकी बहुत पिटाई की थी जिसके बाद से अब मोरों को कोई नहीं मारता है।