भारत में वर्ण परंपरा प्रारम्भ से ही विवादों में रही है। इसमें सबसे ज्यादा आंच निम्न जाति के लोगों पर आती थी। रीती-रिवाज और परंपरा के नाम पर इनका बहुत शोषण किया गया। ऐसी ही एक परंपरा के बारे में आज हम आपको बताएँगे। जिसमे महिलाओं को अपने स्तन ढकने के लिए कर (Tax) देना पड़ता था। इस कर को मूलकारम (mulkaram) बोला जाता था।
Travancore (त्रावणकोर) रियासत में नायर (उच्च जाती) ज़मींदारों का बोलबाला था। इनके यहाँ नादर समुदाय (निम्न जाती) के लोग मजदूरी करते थे। नादर समुदाय को सोना-चाँदी पहनने, छाता लगाने व मंदिर जाने तक का अधिकार नहीं था। वर्ण परंपरा में सबसे निचे होने के कारण इनका बहुत शोषण हुआ, खासकर महिलाओं का।
भारत के त्रावणकोर (केरल) में 1719 से 1949 तक एक रियासत थी। जिसमें निम्न जाति के पुरषों व महिलाओं को ऊंची जाति के लोगों के सम्मान में शरीर का ऊपरी हिस्सा ढकना नहीं होता था। जो ऐसा करता था उसे कर (Tax) देना पड़ता था।
जितने बड़े स्तन उतना ज्यादा कर
इसमें एक अजीब बात ये भी थी कि जिस महिला के जितने बड़े स्तन होते थे उसे उतना ज्यादा कर देना पड़ता था। ये परंपरा एक कानून बन चुका था और जो इसे तोड़ता उसे कर या सजा दी जाती थी।
इस अजीब परंपरा से कोई बचा नहीं था। नायर, क्षत्रिय और ब्राह्मण महिलाएं भी स्तन नहीं ढक सकती थी। लेकिन उच्च जाती की होने के कारण इन्हे ये अनुमति थी कि जब ये घर से बाहर जाएँ तो अपने स्तन को ढक सकती है। वहीँ नादर महिलाओं को हर समय बिना कपड़ों के रहना होता था।
कर की जगह काट कर दे दिए स्तन
राजपरिवार की महिलाओं ने भी इस प्रथा का गलत उपयोग किया। एक बार नादर समुदाय की महिला ने अपने स्तन ढक लिए। ये बात रानी को पता चल गयी और उन्होंने नादर महिला के स्तन कटवा दिए। वहीँ एक दूसरी कहानी के अनुसार नादर महिला ने अपने स्तन ढक लिए। जिसका नायरों ने विरोध किया पर नादर महिला ने कहा वो कर देने को तैयार है पर स्तन न ढकने को नहीं। इसके बाद नायरों ने कहा कि वो अगले महीने कर लेने आएंगे। जब वे कर लेने आये तो नादर महिला ने अपने स्तन काट कर सामने रख दिए और कहा कि ले जाईये इस मांस के टुकड़े को। जब स्तन ही नहीं रहेंगे तो कर किस चीज पर लेंगे आप।
परंपरा के खिलाफ उठी आवाज़
इसके बाद नादरों ने इस प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठायी। उस समय अंग्रेजों का दखल ज्यादा हो चुका था। 1829 में रियासत के दीवान मुनरो ने ऐलान किया कि ईसाई धर्म अपना लेगा उसे स्तन ढकने के अनुमति होगी। दीवान मुनरो कि अदालत में दरवाजे पर कपडे रख कर जाना होता था। इसका नायरों ने विरोध किया। लेकिन इस ऐलान के बाद कई नादरों ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया।
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1955 आते-आते इस प्रथा का अंत हो गया। नायरों ने इसका विरोध किया और वहां दंगे शुरू हो गये। इस दौरान नादरों के घरों में आग लगा दी गयी और उन्हें प्रताड़ित किया गया। इसके बाद सर्कार ने नादर समुदाय की महिलाओं को स्तन ढकने की अनुमति दे दी। लेकिन इसमें भी भेद भाव हुआ। नादर महिलाओं को स्तन ढकने की अनुमति तो मिल गयी लेकिन उन्हें विशेष कपड़े पहनने को कहा गया। जिससे ये पता चल सके की वो निम्न जाती की है।