सुभाष चंद्र बोस जिन्हें ‘नेताजी’ के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म 23 जनवरी, 1897 को हुआ था। आज नेता जी की 125वीं बर्थ एनिवर्सरी है। भारत के ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में उनका अहम योगदान रहा था। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ विदेशों से एक भारतीय राष्ट्रीय बल का नेतृत्व किया। वह मोहनदास करमचंद गांधी के समकालीन थे। हालांकि वह गांधी जी के साथ एक सहयोगी के रूप में और फिर विरोधी के रूप में भी रहे। बोस को विशेष रूप से स्वतंत्रता के लिए उग्रवादी नीति के लिए जाना जाता था जबकि गांधी जी अहिंसा के मार्ग पर चलते थे। सुभाष चंद्र बोस जीवित रहते हुए जितने प्रख्यात थे, उनके निधन के बाद तो नेता जी को लेकर और भी चर्चा हुई।
मृत्यु का रहस्य !
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मौत आज भी एक रहस्य है। सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई, इसको लेकर सरकारी दस्तावेजों में कुछ और लिखा है तो वहीं इतिहासकार अलग राय रखते हैं। कोई उनके प्लेन क्रैश में निधन की बात करता है तो किसी को गुमनामी बाबा याद आते हैं। आइए जानते हैं सुभाष जी के निधन से जुड़ी रहस्यमयी बातें।
विमान हादसा !
नेता जी के निधन की यह सबसे आम अवधारणा है। भारत सरकार द्वारा सयाक सेन को एक आरटीआई जवाब में कहा गया था। शनावाज समिति की रिपोर्टों पर विचार करते हुए, सरकार ने कहा कि 18 अगस्त, 1945 को जापानी जनरल शिदेई के साथ ताइवान में एक विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु हो गई थी और उसी दिन उनके शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया गया और राख को टोक्यो स्थित बौद्ध मंदिर में ले जाया गया।जो अंततः अन्य विवादों का कारण बना।
जेल में हुई मृत्यु !
रिटायर्ड मेजर जनरल जी डी बख्शी द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘बोस: द इंडियन समुराई’ के अनुसार, नेताजी और आईएनए मिलिट्री असेसमेंट नेताजी की विमान दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी। उन्हें सोवियत संघ भागने में सुविधा हो सके, इसके लिए यह सिद्धांत लाया गया था। इसलिए, इस पुस्तक ने उनकी मृत्यु के रहस्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि जेल में अंग्रेजों द्वारा यातना के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
अन्य थ्योरी !
पेरिस स्थित इतिहासकार जेबीपी मोर ने फ्रांस सीक्रेट सर्विस की रिपोर्ट्स का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि बोस 1947 तक जीवित थे। रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि वह भारतीय स्वतंत्रता लीग के पूर्व प्रमुख थे और एक जापानी संगठन हारीरी किकान के सदस्य भी थे। जबकि ब्रिटिश और फिर भारत सरकार नेता जी के विमान हादसे में मौत को ही सच मानती है। हालांकि इस फ्रांसीसी ने उस सिद्धांत का कभी समर्थन नहीं किया।
गुमनामी बाबा कनेक्शन !
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में रह रहे गुमनामी बाबा की मृत्यु 16 सितंबर, 1985 को हो गई थी, जिसके बाद उनके बारे में चर्चाओं ने और जोर पकड़ा। शहर के सिविल लाइन्स के ‘राम भवन’ में रहने वाले गुमनामी बाबा को स्थानीय लोग भगवानजी के नाम से भी जानते थे। उन्हें गुमनामी बाबा इसलिए कहा जाता था, क्योंकि वह बेहद गोपनीय तरीके से यहां रहते थे। उन्हें मिलने-जुलने की इजाजत बहुत कम लोगों को थी। उनका अंतिम संस्कार भी इसी तरह की गोपनीयता के साथ किया गया था। लेकिन लोगों के मन में उन्हें लेकर रहस्य हमेशा से बरकरार था।
गुमनामी बाबा को लेकर लोगों के मन में उठने वाले तमाम सवालों और उनसे जुड़े रहस्य उस वक्त और गहरा गए, जब उनके कमरे से कई ऐसे सामान बरामद किए गए, जिसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि ये साधारण बाबा थे। ऐसे में ही इन कयासों को बल मिला कि वे सुभाष चंद्र बोस भी हो सकते हैं। उन्हें लेकर जब कौतूहल बढ़ा तो पता चला कि वह 1970 के दशक में यहां पहुंचे थे। हालांकि किसी को भी इसका भान नहीं था कि वह कहां से आए हैं। उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि हर 23 जनवरी को उनसे मिलने के लिए कुछ लोग गोपनीय तरीके से फैजाबाद पहुंचते थे।
अंग्रेजी और जर्मन के विद्वान !
उस वक्त जो रिपोट्स आई थीं, उनमें गुमनामी बाबा को थोड़ा-बहुत जानने वालों के हवाले से यह भी कहा गया कि वह फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन भाषा बोलते थे। उनके पास दुनियाभर के नामचीन अखबार, पत्रिकाएं और साहित्य भी पहुंचते थे। उनके निधन के बाद जब कमरे से मिले सामानों को देखा गया तो वहां किताबों और अखबारों का जखीरा भी मिला।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके पास से नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार की तस्वीरों के साथ-साथ वे चिट्ठियां भी मिलीं, जो कलकत्ता से लोग लिखते थे। इन्हीं सब बातों ने सुभाषचंद्र बोस को लेकर रहस्य व कौतूहल को और बढ़ाया और यह कयास लगने लगे कि गुमनामी बाबा सुभाष चंद्र बोस हो सकते हैं। हालांकि इतिहास यह मानकर चलता है कि 1945 में प्लेन क्रैश में उनका निधन हो गया था। बहरहाल, इन सबसे अलग भारत मां के सच्चे सपूत को आज हम सब उनकी जयंती पर नमन करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।