उत्तर प्रदेश में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव ने लगातार महंगी हो रही शिक्षा को लेकर शासन, प्रशासन और सरकार तक अपनी आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने एक लेख में कहा कि ‘शिक्षा मनुष्य का अधिकार’ और ‘शिक्षा का मौलिक अधिकार’ ये दोनों ही बातें हमारे शिक्षा अधिकार की तरफ ही इशारा करती हैं और यह अधिकार अब कानूनी तरीके से भी लागू भी हो गया है। साथ ही उन्होंने बताया कि यह लेख शिक्षा अधिकार के ऊपर नहीं है बल्कि शिक्षा के बाज़ारीकरण के ऊपर लिखा गया है।
लेख में प्रसपा के अध्यक्ष ने कहा है कि शिक्षा का व्यवसाय या शिक्षा का बाज़ारीकरण दोनों मूल रूप से एक ही बात की तरफ इशारा करते हैं जोकि स्कूलों में लगातार ‘बढ़ती हुई फीस’ है। केंद्र सरकार ने शिक्षा को मानव अधिकार का कानूनी रूप तो दे दिया है लेकिन संसद में मौजूद मंत्रियों ने यह सोचा कि केवल “Right to Education Act” बना देने से हम लोगों के बच्चे पढ़ लिख जाएंगे। लेख में आगे कहा गया कि इस कानून के अनुसार हमारे बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा बिलकुल मुफ्त है लेकिन बात यह है कि इस मुफ्त शिक्षा का वास्तविक स्तर क्या होना चाहिए और मुफ्त होने के अलावा इसकी गुड़वत्ता भी उचित होनी चाहिये या नहीं होनी चाहिए।
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शिवपाल यादव ने आगे कहा कि देश के भीतर लगातार बढ़ते हुये modern public school तथा इनकी महंगी होती फीस किसी भी सरकार के दोहरे चरित्र को दर्शाती है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि ज़रा बताइये कि कौन सा ऐसा पब्लिक स्कूल है जो प्राथमिक शिक्षा मुफ्त में देने को तैयार हो जाएगा? उन्होंने आगे कहा कि अगर पैसा नहीं है तो मुफ्त के नाम पर अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेज दो जहां पर शिक्षा से कोई वास्ता नहीं होता है क्यूंकि कक्षा 8वीं तक तो फेल न करने का प्रावधान सरकार ने पहले से ही बना दिया है। इस प्रकार कोई भी बच्चा कक्षा 8वीं तक पढ़ाई करे या ना करे पास तो होना ही है और इस तरह पूरा हो गया ना ‘मौलिक और प्राथमिक शिक्षा का अधिकार’। अंत में उन्होंने कहा कि इसे कहते हैं कि ‘साँप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे’।