भारतीय जनता पार्टी (BJP) के ग्यारहवें अध्यक्ष के रूप में 59 साल के जेपी नड्डा को चुना जा रहा है, इनके राजनितिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ जुड़कर उत्तर भारत के पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में से हुयी और वर्ष 2010 तक आते आते नड्डा राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी के अहम् चहरे हो जाते है।
2 दिसंबर 1960 को कृष्णा और नारायण लाल नड्डा के घर जन्मे, उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई सेंट जेवियर्स पटना से की और साथ ही पटना कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। पटना में रहते हुए वह एबीवीपी से जुड़ गए और इस संगठन से जुड़ाव जारी रखा। जब पटना विश्वविद्यालय से वरिष्ठ श्री नड्डा के सेवानिवृत्त होने के बाद वे और उनका परिवार अपने मूल हिमाचल प्रदेश वापस चले गए।
यहाँ, श्री नड्डा ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला से कानून की डिग्री के लिए दाखिला लिया और छात्र राजनीति में सक्रिय रहे, वहां छात्र संघ के पहले एबीवीपी मनोनीत अध्यक्ष बने।
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उनके संगठनात्मक कौशल को मान्यता दी गई थी और वह 1985-89 के बीच दिल्ली में ABVP के लिए संगठनात्मक महासचिव के रूप में राज्य से एक अधिक केंद्रीय संगठनात्मक भूमिका के लिए चले गए। ये न सिर्फ छात्र आंदोलनों के लिए बल्कि बीजेपी के लिए भी महत्वपूर्ण दिन थे, जो 1985 के लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन से बाहर निकलकर अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के लिए पिच खड़ी करने के लिए आए थे। दिल्ली में श्री नड्डा के कार्यकाल ने उन्हें 1993 में अपने पहले विधानसभा चुनाव लड़ने में मदद की, सभी में उन्होंने तीन विधानसभा चुनाव जीते और दो बार हिमाचल सरकार में मंत्री रहे।
हालांकि यह 2010 में था, जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पार्टी अध्यक्ष थे कि उन्हें संगठन में बड़ा ब्रेक मिला। श्री नड्डा के समकालीन श्री गडकरी ने अपने पुराने दोस्त को तब विराम दिया जब उन्होंने अपनी टीम के अध्यक्ष के रूप में एक साथ रखा, जिससे वह पहले राष्ट्रीय महासचिव बने और बाद में उन्हें 2012 में राज्यसभा के लिए चुना गया।
उन्हें पहले भाग में मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया था, लेकिन वह सरकार के दूसरे भाग में संगठनात्मक काम पर लौट आए। 2019 के चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी के रूप में उनकी भूमिका को बहुत सराहा गया था और वह जल्द ही नरेंद्र मोदी-अमित शाह के समीकरण में खुद के लिए एक महत्वपूर्ण, भरोसेमंद स्थान हासिल करने में सफल रहे। इसके परिणामस्वरूप उन्हें जून 2019 में बीजेपी का पहला कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि श्री शाह का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया जाएगा, और आज उनके अध्य्क्ष बनाते ही सारे कयासों पर पूर्ण-विराम लग गया।
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श्री नड्डा के लिए न केवल मोदी-शाह समीकरण में तीसरे पहिये की भूमिका है बल्कि एक कड़ी चाल भी चलना है, लेकिन अपने पूर्ववर्ती श्री शाह के नक्शेकदम पर चलना भी कठिन होगा क्यूंकि शाह का नियंत्रण जितना पार्टी संगठन पर था उतने ही कुशलता से वो पार्टी को तमाम चुनावों में जीत भी दिलाते आये हैं। यह तथ्य है महत्वपूर्ण है कि दिल्ली और बिहार में चुनाव के तुरंत बाद उन्हें दो कठिन चुनावों का सामना करना पड़ेगा। बीजेपी को उम्मीद है कि पार्टी में शीर्ष पद के लिए उसका सुचारू उदय हो सकता है।