किसानों को रोकने के लिए नक्सलियों वाले हथकंडे अपना रही पुलिस, जगह-जगह सड़कें खोद रही

New agricultural bill 2020
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पंजाब और हरियाणा के हजारों से ज्यादा संख्या में किसान बीते काफी समय से केंद्र सरकार द्वारा लाये गए कृषि संबंधी नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं। इसको लेकर पंजाब में किसानों ने काफी दिनों से धरना प्रदर्शन कर रखा था साथ ही रेलवे ट्रैक को भी जाम कर दिया था लेकिन इसको लेकर सरकार की कानों पर जून तक नहीं रेंगा। पहले इस कानून का विरोध पंजाब और हरियाणा में अलग अलग हो रहा था लेकिन अब दोनों प्रदेशों के किसान एक साथ मिल गए हैं।

26 नवम्बर से शुरू हुआ किसानों का दिल्ली कूच का आंदोलन 

अब इस कानून के विरोध को आगे बढ़ाते हुए किसान संगठनों ने 26 नवंबर से ‘दिल्ली कूच’ का कार्यक्रम रखा है और इसमें शामिल होने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और इनकी संख्या लाखों तक पहुँच गयी है। इसमें शामिल होते हुए लाखों किसान अपने ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं। इन किसानों में सबसे बड़ी संख्या पंजाब और हरियाणा के अलग-अलग जिलों से आए किसानों की ही है।

ज्यादा अंतर नहीं पुलिस और नक्सलियों के कामों में 

सरकार और पुलिस मिलकर किसानों को दिल्ली पहुँचने से रोकने के लिए हर तरीके के हथकंडे अपना रही है। पुलिस ने दिल्ली – करनाल हाइवे को बैरिकेडिंग लगाकर बंद कर दिया है जहां उससे भी हालात नहीं संभल रहे तो नक्सलियों की तरह सड़कें तक खोद डाली हैं। कुछ इसी तरह की सड़कें नक्सली प्रभावित इलाके बस्तर में देखने को मिलती हैं दोनों में यह अंतर होता है की वहां नक्सली सड़कें इसलिए खोद देते हैं ताकि सुरक्षाबल उन तक न पहुँच सकें लेकिन यहां परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं , यहां पुलिस सड़कें इसलिए खोद रही हैं की किसान दिल्ली तक न पहुँच पाएं।

किसी भी हालात में किसानों को रोकना, पुलिस का एकलौता काम 

पुलिस सड़कें खोदने के साथ और भी तरीके अपना रही है जैसे की हाइवे पर चलने वाली ट्रकों को जबरदस्ती रोड पर आड़ा-तिरछा खड़ा करना जिससे की किसानों की मार्ग बाधित हो। आरोप तो यह भी हैं की पुलिस जबरदस्ती किसानों के गाड़ियों की चाबियां छीन रही है और किसानों की निजी संपत्ति को नुक्सान पहुंचा रही है।

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किसानों का कहना है की सभी पुलिसकर्मी मिलकर कितना भी जोर लगा लें लेकिन वो दिल्ली पहुँचने में जरूर कामयाब होंगे। किसानों के हौसले बुलंद हैं उनका कहना है की बिना सरकार तक अपनी आवाज़ पहुंचाए रुकेंगे नहीं और केंद्र सरकार को उनकी बात माननी ही पड़ेगा। किसान अपने साथ महीने भर से ज्यादा के राशन का सामान लेकर चले हैं जिससे की अगर महीने भी लग जायेंगे तब भी वो रुकेंगे नहीं।

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