Navratri 2020: प्रमाण के साथ जानें कब है दुर्गाष्टमी और नवमी

Navratri 2020 durgastmi and navmi date
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नवरात्री में भक्त माँ दुर्गा के नव रूपों की नौ दिनों तक पूजा-अर्चना करते है। इन नौ दिनों में सबसे खास दिन अष्टमी और नवमी का होता है। इसे लेकर अक्सर ज्यादातर लोग उलझन में रहते है कि अष्टमी कब है व नवमी कब है और इसका पता कैसे लगाएं।

दुर्गाष्टमीपरशास्त्रमतानुसारनिर्णय

इसका मतलब यह है कि कलामात्र भी यदि सूर्योदयकाल में अष्टमी तिथि हो, तो उस नवमी से युक्त अष्टमी में ही दुर्गाष्टमी का पर्व मनाना चाहिये। अष्टमी यदि सप्तमी से जरा सा भी स्पर्श हो तो उसे त्याग देना ही उचित होगा। क्योंकि यह राष्ट्र, पुत्र, पौत्र और पशुओं का नाश करने के साथ ही पिशाच योनि देने वाली होती है।

पञ्चाङ्गकर्ता एवं ज्योतिषी गण जिन्होंने 23 अक्टूबर को अष्टमी बताया है। यह अष्टमी घातक है। पञ्चाङ्ग ने धर्मसिन्धु के वचन को ही प्रमाण मानकर निर्णय दे दिया है। उन्होंने उनके अन्य वचनों पर तनिक भी ध्यान नही दिया है। जबकि निर्णयसिन्धु में स्पष्टतः सप्तमी विद्धा अष्टमी को त्यागकर लेशमात्र या कलामात्र (24 सेकंड) के लिये भी यदि अष्टमी सूर्योदयकाल में विद्यमान हो तो उसी दिन दुर्गाष्टमी का व्रत करना चाहिये। नवमी युता अष्टमी ही ग्राह्य एवं श्रेष्ठ है, जबकि सप्तमी युता अष्टमी का सर्वथा त्याग करना चाहिये।

प्रमाणार्थठाकुरप्रसादपुस्तकभंडारवाराणसी के (संवत 2068 के संस्करण) निर्णयसिंधु के पृष्ठ संख्या 354 एवं 355 पर देखा जा सकता है।

देखिये कुछ प्रमाण वाक्य

मदनरत्न में स्मृति संग्रह से-
शरन्महाष्टमी पूज्या नवमीसंयुता सदा।
सप्तमीसंयुता नित्यं शोकसन्तापकारिणीम्।।

रूपनारायणधृते_देवीपुराणे-
सप्त मीवेधसंयुक्ता यैः कृता तु महाष्टमी।
पुत्रदारधनैर्हीना भ्रमन्तीह पिशाचवत् ॥
(निर्णयसिन्धु पृष्ठ 354)

रूपनारायण में देवीपुराण का बचन अंकित है कि-जिन्होंने भी सप्तमीवेध से युक्त महा-अष्टमी को किया वे लोग इस संसार में पुत्र, स्त्री तथा धन से हीन होकर पिशाच के सदृश भ्रमण करते रहते है।

देखिये- व्रतोपवासनियमे घटिकैकापि या भवेत् । इति देवलोक्ते:। गौडा: अप्येवमाहु:।

देवल ने कहा है कि-व्रत और उपवास के नियम में जो अष्टमी एक घडी भी हो तो उसे ग्रहण करें। लेकिन इसका भी निषेधक वाक्य मिलता है।
देखिये- (सूर्योदये कालाकाष्ठादियुतामपीच्छन्ति । ‘यस्यां सूर्योदयो भवेत् । इति क्षयेणाष्टम्या: सूर्योदयाSभावे तु सप्तमीविद्धा ग्राह्या) कहते हैं।

सप्तमी कलया यत्र परतश्चाष्टमी भवेत्।
तेन शल्यमिदं प्रोक्तं पुत्रपौत्रक्षयप्रदम्।।

सप्तमीशल्यसंविद्धा वर्जनीया सदाष्टमी।
स्तोकापि सा महापुण्या यस्यां सूर्योदयो भवेत्।।

मूलयुक्तापि सप्तमीयुता चेतत्त्याज्यैवेत्युक्तं निर्णतामृते दुर्गोत्सवे मूलेनापि हि संयुक्ता सदा त्याज्याष्टमी बुधै:। लेशमात्रेण सप्तम्या अपि स्याद्यदि दूषिता।।

पञ्चाङ्ग में दिया गया धर्मसिन्ध के वचनों का निर्णयसिन्धु के इस वचन से प्रतिकार हो जाता है। अतः धर्मसिन्धु के वचन के आधार पर जो 23 अक्टूबर को दुर्गाष्टमी लिखा गया है, वह ग्राह्य नही है एवं पुत्रादि को नष्ट करने वाला है। अतः 24 अक्टूबर को ही दुर्गाष्टमी करना शास्त्रोचित है।

अर्थार्त – यदि अष्टमी तिथि का क्षय नहीं हुआ हो तभी सप्तमीविद्धा में स्वीकार करें। यदि अष्टमी का क्षय न हुआ हो और वह सूर्योदय के बाद कलामात्र (24 सेकेंड) भी विद्यमान हो तो उस नवमीयुता अष्टमी को ही ग्रहण करना चाहिये।

पं शान्तनु अग्निहोत्री
ज्योतिष एवं वास्तु विचारक

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