”हे राम तेरे नाम को हर नाम पुकारे, बंदा ये तेरा पल-पल तेरी राह निहारे…” प्रभु श्रीराम के प्रति ये आस्था व्यक्त करती ये लाइनें किसी हिंदू कवि की नहीं बल्कि मुस्लिम महिला साहित्यकार डॉक्टर माहे तिलत सिद्दीकी की गजल का हिस्सा हैैं। जिसमें गजल व नज्मों से प्रभु श्रीराम की अकीदत के साथ उन्होंने पुस्तक ‘रामकथा और मुस्लिम साहित्यकार समग्र’ का उर्दू तर्जुमा यानी अनुवाद किया है।
ताकि मुस्लिम भी प्रभु श्रीराम के कृतित्व-व्यक्तित्व से रूबरू हो सकें। इस पुस्तक में मुस्लिम साहित्यकारों ने रचनाओं से श्रीराम को नमन किया है। डॉक्टर सिद्दीकी कहती हैैं कि भाषा-कलम का कोई मजहब नहीं और सच्चे साहित्यकार की आंखों पर मजहबी चश्मा नहीं होता।
श्रीराम को सिर्फ हिंदू लेखकों ही नहीं मुस्लिम साहित्यकारों ने भी आत्मसात किया है। उन्होंने नज्मों व गजलों में प्रभु राम की महानता, वीरता और त्याग व समर्पण को पिरोया है। लेकिन दुर्भाग्य की बात रही कि इस अलग तरह की भावना रखने वाली मुस्लिम महिला साहित्यकार को उतनी शोहरत नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी।
मुस्लिम साहित्यकारों द्वारा लिखी गई नज्मों व गजलों व लेखों को मुस्लिम समाज तक पहुंचाने का बीड़ा महिला साहित्यकार एवं मुस्लिम जुबली गर्ल्स इंटर कालेज में शिक्षिका डॉ.सिद्दीकी ने उठाया है। वह गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूत करने के लिए सेतु का काम कर रही है, उन्होंने श्रीराम पर खुद नज्म लिखीं।
वहीं आपको खास बात बतातें चलें कि मुस्लिम साहित्यकारों की रचनाओं पर आधारित पुस्तक ‘रामकथा और मुस्लिम साहित्यकार समग्र’ का उर्दू तर्जुमा भी किया है। इस पुस्तक में उन साहित्यकारों व शायरों का परिचय व कृतियां हैं जिन्होंने प्रभु श्रीराम के कृतित्व को कलम से उकेरा है। पुस्तक के मूल लेखक व संपादक पंडित बद्री नारायण तिवारी ने तर्जुमा के लिए उन्हें चुना।
यादों के झरोखों से समकालीन हिंदी एवं उर्दू कहानी लेखिकाओं का तुलनात्मक अध्ययन, गंतव्य की ओर, अदबी संगम सरीखी आठ पुस्तकें लिख चुकीं डॉक्टर सिद्दीकी ने तर्जुमे के लिए अपनी मां पूर्व अध्यक्ष उर्दू विभाग हलीम मुस्लिम डिग्री कालेज डॉक्टर महलका एजाज की मदद ली। उन्होंने कहा कि उर्दू पढऩे वालों के लिए श्रीराम को समझने के लिए इससे बेहतर कोई विकल्प नहीं होगा। वह कहती हैैं कि पुस्तक का उर्दू तर्जुमा गंगा-जमुनी संगम का प्रयास है जो एकता और भाई-चारे को मजबूत करेगा।
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मुस्लिम महिला साहित्यकार के इस राम प्रेम को भले ही सरकार ने अभी तक नही सराहा है लेकिन भारत की जनता में जिसने भी देखा या सुना वह साहित्यकार मुस्लिम महिला का जिक्र करना नही भूला।