ऐसे विधायक जो डेढ़ दशक तक विधायक पद पर रहने के बाद भी एक पक्का मकान तक नहीं बना पाए

Lakhimpur Kheri news
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Lakhimpur Kheri news: देश में विद्यायक शब्द सुनकर सभी के मन में करोडो की संपत्ति और महंगी गाड़ियां और अफसरों में रुआब की एक छवि सामने आने लगती है।लेकिन आज हम एक ऐसे शख्स की बात करने जा रहे है। जो निघासन विधानसभा से दो बार सन्र 1989 और 1991 में निर्दलीय और फिर 1993 में एक बार समाजवादी पार्टी से विधायक रह चुके है, यही नहीं तीन बार विधायक रहने के बावजूद लखनऊ में अपने लिए एक घर तक न बना पाए और वह हमेशा गरीबी और तगंहाली में जीवन जीते रहे। खुद विधायक होने के बावजूद उन्होंने अपने बच्चो को एक आम इंसान की तरह जीना सिखाया।

ऐसे थे लखीमपुर जिले के जिन्दादिल स्वर्गीय विधायक 

यूपी के लखीमपुर खीरी जिले तहसील पलिया के एक छोटे से गांव त्रिकौलिया पढुआ के रहने वाले स्वर्गीय निर्वेन्द्र कुमार मिश्रा उर्फ मुन्ना भैय्या, जिनकी बीते रविवार को एक जमीनी विवाद के चलते कुछ भूमाफियाओ ने हत्या कर दी थी। वे एक ऐसे विधायक थे जो पढ़े लिखे तो कम ही थे लेकिन उन्हें पढ़ने के शौक बहुत था जिसके चलते उन्होने कई किताबें भी लिख डाली। मुन्ना सभी के दिलों पर राज करते थे जो हमेशा गरीबों और मजलूमों की आवाज बनकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे। असत्य के खिलाफ आवाज उठाने के लिये वह अक्सर धरने पर बैठ जाया करते थे। बतौर विधायक उनका आवास दारुलशफा होता था। वहीं उनके सैकड़ों समर्थक जाकर रुकते थे और उन्हीं के बीच वह भी फर्श पर लेट जाते थे।

Nirvendra Kumar Mishra
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वह जाति-भेद और ऊंच-नीच को दूर रखकर सादगी का जीवन जीने वाले इंसान थे जो भी बुलाता वह उसी के हो जाते।वह जमीन पर ही धम्म से बैठ जाते थे। निर्दलीय रहे हों या फिर सत्तासीन सपा के विधायक होने के बावजूद किसी के घर पहुंचने पर वह अपने लिए किसी खास सीट का इंतजार और अपेक्षा नहीं करते थे। टूटी चारपाई हो या लकड़ी का जर्जर स्टूल या कुछ न होने पर जमीन पर बिछा बोरा, मुन्ना भैया हर जगह अपना आसन जमा लेते थे।

आवाज-ए-उत्तर प्रदेश से परिजनों की ख़ास बातचीत

जिनके हालातों की जानकारी होने पर हमारे आवाज-ए-उत्तर प्रदेश के संवाददाता फारूख हुसैन पलिया तहसील के त्रिकौलिया उनके निवास स्थल पर पहुंचे। उनका घर एक मंजिला ही था जिसमें पेण्ट तक नहीं हुआ था । जगह जगह दीवारें चटकी हुई छत का प्लास्टर टूटा हुआ एक सोफा जिसपर अक्सर वो बैठा करते थे।

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एक छोटी सी कोठरी नुमा कमरा सामने एक टूटा बाक्स जिसमें उनका सामाने रखा हुआ जो शायद उनकी जीवन भर की जमा पूंजी घर में दरवाजों की जगह केवल परदे पड़े हुए गैस की जगह आज भी पुराने जमाने वाला मिट्टी का चुल्हा जिस पर खाना बनता था दीवारों पर जगह जगह उनके द्वारा लिखे गये श्लोक जो दीवारों की रंगत बढ़ा रहे हो, आंगन में एक तुलसी का पौधा. कुल मिलाकर ऐसे हालात जो शायद ये एहसास करवा रहें हों कि देखा ऐसा होता है एक ईमानदार विधायक का घर।

खुद ही सियासत से बनाई दूरी

समय बदला और सियासत चमक दमक वाली हो गई। पैदल वोट मांगने जाने वाले मुन्ना भैया के सामने आने वाले बड़ी बड़ी गाडियों का काफिला लेकर आते है। सियासत के इस चकाचौंध ने अपने हमदर्द विधायक को छोड़ चका चौंध वाले विधायक के तरफ देखा और आज भी देख रहा है मगर मुन्ना भैया के लिए विधायकी कोई प्रतिष्ठा का प्रश्न नही थी। उनको लगा कि जनता को चकाचौंध वाले विधायक पसंद है तो वह खुद धीरे से सियासत से पीछे हट गए। तीन बार विधायक रहे मुन्ना भैया ने बाद में किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की भारतीय किसान यूनियन से भी नाता जोड़ा था, लेकिन बदले समय में वह चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हो पाए।

रिपोर्ट- फारूख हुसैन

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