कबीर दास की जीवनी | कबीर दास के दोहे

    kabir das ke dohe

    संत कबीरदास भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त मिथ्यों पर वार करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनके द्वारा की हुई रचनाओं में साफ़ दिखती है। कबीरदास का जीवन मानो लोक कल्याण हेतु ही था।

    कबीरदास की जीवनी (Kabir Das Ki Jivni)

    कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक कहानियां हैं। कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीरदास का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ था। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवा आवस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्हें हिन्दू धर्म की बातें मालूम हुईं तब उन्होंने खुद को बदला। दरअसल, कबीरदास ने खुद के ही शब्दों में कहा है, ‘हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये।’

    इसके पीछे की कहानी है कि एक दिन, एक समय रात रहते कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर गए। रामानन्द जी गंगा स्नान करने के लिये सीढ़ियों से उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीरदास के ऊपर पड़ गया। ऐसे में उनके मुख से तत्काल ही ‘राम-राम’ निकला। उसी समय कबीरदास ने राम को दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।

    कबीर के जन्मस्थान के संबंध में तीन जगहों का नाम सबसे लोकप्रिय है इसमें काशी, मगहर और आजमगढ़ में बेलहरा गांव। मगहर के लिए यह तर्क दिया जाता है कि कबीर ने अपनी रचना ‘कबीर दास के दोहे’ में यहां का उल्लेख में लिखा है “पहिले दरसन मगहर पायो पुनि कासी बसे आई।” इसका अर्थ है कि काशी में रहने से पहले उन्होंने मगहर देखा। मगहर, वाराणसी के निकट ही है और वहां कबीरदास का मक़बरा भी है।

    कबीरदास का अधिकांश जीवन काशी में रहते बीता। कई लोग आजमगढ़ बेलहरा गांव को कबीरदास का जन्मस्थान मानते हैं। वे कहते हैं कि बेलहरा ही बदलते-बदलते लहरतारा हो गया। फिर भी पता लगाने पर न तो बेलहरा गांव का ठीक पता चला पाता है और न यह मालूम होता है कि बेलहरा का लहरतारा कैसे बन गया और आजमगढ़ जिले से काशी के पास कैसे आ गया? वैसे आजमगढ़ जिले में कबीर, उनके पंथ या अनुयायियों का कोई स्मारक नहीं है।

    वहीं अगर कबीरदास के माता-पिता के विषय में बात की जाए तो उसमें भी लोगों की एक राय निश्चित नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि नीमा और नीरु की कोख से यह अनुपम ज्योति पैदा हुई थी। तो वहीं कुछ लोगो का मानना है कि वह लहर तालाब के समीप विधवा ब्राह्मणी की पाप-संतान के रुप में आकर यह हुए थे। यह ठीक तरह से कहा नहीं जा सकता है। कई मत यह है कि नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण किया था।

    कबीर दास के दोहे (kabir das ke dohe)

    संत कबीर दास कि जीवनी जितनी प्रासंगिक है उनके दोहे भी आजतक उतने पथ प्रदर्शक के रूप में प्रासंगिक है। यहां आप के लिए कुछ कबीरदास सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय दोहे है उन्हें प्रस्तुत कर रहे हैं।

    “माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
    एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥”

    “माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।
    कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर॥”

    “तिनका कबहुं ना निंदए, जो पांव तले होए।
    कबहुं उड़ अंखियन पड़े, पीर घनेरी होए॥”

    “गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय।
    बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय॥”

    “साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
    मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥”

    “धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥”

    “कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
    हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥”

    “माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
    आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥”

    “रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
    हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥”

    “दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
    जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥”

    “बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
    पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥”

    “उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
    तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥”

    “सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई।
    धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥”

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