तुलसी विवाह: जाने तुलसी विवाह की पूरी कथा व पूजन विधि

इस दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से होता है। इस दिन से ही शुभ लग्न की शुरुआत भारत में हो जाती है। हिन्दुओं में मान्यता है की इस दिन श्री विष्णु योग निद्रा से जागते है। तुलसी जी का विवाह श्री विष्णु जी के स्वरुप शालिग्राम से किया जाता है। तुलसी और शालिग्राम के विवाह को लेकर कई पौराणिक कथायें है। बता दें इस दिन भगवन विष्णु जी की पूजा विधिवत तरीके से की जाती है। तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन किया जाता है।

तुलसी और शालिग्राम के विवाह की विधि

1. तुलसी विवाह के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करके स्वच्छ कपडे पहने जाते है फिर तुलसी के गमले को गेरू से रंगा      जाता है। इसके बाद गन्ने का मंडप बनाया जाता है।
2. तुलसी माता को लाल चुनरी ओढ़ा कर चूड़ियां भी पहनाई जाती है। इसके बाद दक्षिणा के रूप में नारियल अर्पित            किया जाता है।
3. तुलसी के गमले में शालिग्राम को रखे फिर तिल अर्पित करे।
4. दूध में भीगी हल्दी को शालिग्राम व तुलसी माता पर लगाएं यह सब करने के बाद शालिग्राम जी के सिंघासन को 7        बार तुलसी माता के चारो ओर घुमाये। फिर अंत में आरती करे।
5. इस पूजा में आंवला,बेर मूली भाजी को चढ़ाये व 11 बार तुलसी के गमले की परिक्रमा करे।
6. इसके बाद श्री हरि को जगाया जाता है जिसके लिए उठो देव सांवरा, भाजी बोर आंवला गन्ने की झोपडी में,शंकर जी      की यात्रा। मंत्र का आह्वाहन करें।

तुलसी विवाह की कथा

एक असुर था जिसका नाम जलंधर था इस असुर का विवाह वृंदा नाम की एक सुन्दर कन्या से हुआ जो श्री हरि की भक्त थी। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर अजेय हो गया। जिसके बाद भगवन शिव से युद्ध किया अजेय होने के कारण भवन शिव से जलंधर जीत गया। अपनी शक्ति पर जलंधर को अभिमान हो गया और वो स्वर्ग जाकर कन्याओं को परेशां करने लगा। देवता जलंधर को हराने में असमर्थ रहे जिसके बाद वो श्री हरि के पास गए और जलंधर को समाप्त करने की प्राथना करने लगे। देवताओं के आग्रह पर श्री हरि ने जलंधर का रूप धारण किया वृंदा के पति पतिव्रत धर्म को भंग कर दिया। वृंदा का पतिव्रत भंग होने से जलंधर की शक्ति क्षीण हो गयी और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को चल का पता चला तो उसने श्री हरि यानि भगवान विष्णु को पत्थर का हो जाने का शाप दे दिया। जिसके बाद देवताओं ने वृंदा से श्राप वापस लेने की प्राथना की फिर वृंदा ने शाप वापस ले लिया। श्री हरि ने पश्चाताप के लिए, वृंदा के शाप को जीवित रखते हुए पत्थर का रूप प्रकट किया। जिसे हम आज शालिग्राम कहते है।

श्री हरी ने वृंदा को वरदान दिया की तुम्हारा अगला जन्म तुलसी के रूप में होगा और तुम मुझे लक्ष्मी से ज्यादा प्रिय होगी। तुम्हे मै अपने शीश में स्थान दूंगा और तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूँगा। इसी वजह से श्री हरि को भोग लगाते समय तुलसी रखी जाती है। वरदान पाने के बाद वृंदा अपने पति जलंधर के साथ चिता पर सती हो गयी और वृंदा की राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा की मर्यादा व पतिव्रता को बनाये रखने के लिए देवताओं ने शालिग्राम का विवाह तुलसी से कराया । तभी से हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है।

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