बँटवारा। हर बँटवारे की की एक क़ीमत होती जिसे चुकाते चुकाते अनगिनत सदियां बीत जाती है। पीढ़ियां खप जाती हैं। लेकिन बँटवारे के घाव भर नहीं पाते।
बँटवारा जमीन का होता है लेकिन उसकी क़ीमत चुकाती वहाँ रहने वाली भोली भाली जनता। और जब बँटवारा धर्म के आधार पर हो तो वही भोली भाली जनता भीड़ में तब्दील हो जाती है और एक दूसरे के खून की होली खेलने लगती है। जनता के बीच में फंस जाते हैं देवी देवता, उनका निवास स्थान, उनसे जुडी आस्था और विश्वास की कहानियाँ।
1947 में भारत से अलग़ होकर धर्म के आधार पर पाकिस्तान की नींव रक्खी गई। हिंदुओं का पाकिस्तान से भारत व मुस्लिमों को भारत से पाकिस्तान आना जाना शुरू हो गया। लेकिन कुछ हिन्दुओं ने पाकिस्तान में रहने का फैसला किया तो दूसरी तरफ़ बहुत से मुसलमानों ने भारत से नहीं जाने का निर्णय लिया।
आज की तारीख़ में लगभग 14 % मुस्लिम भारत की जनसँख्या का हिस्सा हैं तो वहीँ पाकिस्तान में सिर्फ़ 2 % हिन्दू ही बचे हैं। भारत सरकार पाकिस्तान में लगातार हिन्दुओं की घटती जनसंख्या पर कई बार चिंता ज़ाहिर कर चुकी है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने CAA कानून बनाकर पाकिस्तानी हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देने का रास्ता बेहद आसान कर दिया है।
भारत में मुस्लिमों की पर्याप्त जनसंख्या होने के कारण यहाँ के मुस्लिम धर्मस्थानों सालभर लोगों का आना जाना लगा रहता है। एवं सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों की देखभाल व रख रखाव का ख्याल रखा जाता है। यही कारण है कि आज दुनिया भर के पर्यटक भारत आकर लालक़िले, जामा मस्ज़िद, ताज महल, हूमाँयु का मक़बरा, चार मीनार, इमामबाड़ा जैसे अति प्राचीन व अज़ीम मुग़ल स्थापत्य कला का दीदार करते हैं।
लेकिन पाकिस्तान में स्तिथियाँ अलग़ हैं श्रद्धलुओं की कमी के कारण पाकिस्तान के ज़्यादातर हिन्दू धर्मस्थल वर्षभर वीरान रहते हैं। पाकिस्तान सरकार की उदासीनता, देखभाल व रख रखाव के आभाव कारण दिन पर दिन इन प्राचीन धार्मिक स्थलों की स्तिथि बद से बद्द्तर होती जा रही है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पाकिस्तान में कुल मंदिरों की संख्या 1300 के आसपास बताई गई है। जिनमे से 30 ऐसे मंदिर हैं जहाँ श्रद्धालुओं को पूजा पाठ करने की अनुमति है। शेष सभी मंदिर या तो बंद हैं या पाकिस्तान सरकार ने उन्हें मस्ज़िदों व पुस्तकालयों में तब्दील कर दिया है। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में न तो कोई हिन्दू मंदिर है न ही वहाँ हिन्दुओं को दाह-संस्कार करने की इजाज़त है।
आइए आप को ले चलते हैं पाकिस्तान के एक बेहद प्रमुख़ एवं अत्यंत प्राचीन मंदिर के भ्रमण तीर्थ पर।
पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मुल्तान शहर में स्थित भगवान का सूर्य देवता का मंदिर।
यह मंदिर पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के दूसरे सबसे बड़े शहर मुल्तान में पड़ता है। इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा होती है। माना जाता है कि यह मंदिर 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसकी स्थापना भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने की थी।
618 ईस्वी में चीनी यात्री Hsuen Tsang भारत आया था। अपने विवरण में, मुल्तान के सूर्य मंदिर का ज़िक्र करते हुए वह लिखता है “हिन्दुओं पर पूजा पाठ करने के लिए एक विशेष तरह का कर लगाया जाता था बावज़ूद इसके हिंदुस्तान के सुदूर इलाकों से हिन्दू यहॉँ आते थे और अपने आराध्य देव की पूजा करते थे”
मंदिर की भव्यता के बारे में Hsuen Tsang आगे लिखते हैं ” बड़े और लाल रुबियों से बने आँख के साथ शुद्ध सोने की बनी एक सूर्य भगवान की विशाल मूर्ति मंदिर के मुख़्य गर्भ-गृह में रखी थी”। मंदिर परिसर में भगवान शिव और गौतम बुद्ध की मूर्तियों को देखे जाने का उल्लेख भी Hsuen Tsang ने अपने विवरण में किया है। मंदिर के दरवाजों, शिखरों, खम्भों के निर्माण में सोने,चाँदी, व रत्नों का बहुतायत इस्तेमाल होने की बात Hsuen Tsang ने अपने यात्रा वृतांत में कही है।
8वीं शताब्दी में उमय्यद ख़िलाफ़त के शासन के दौरान इस मंदिर पर हमला किया गया था तथा इसमें रक्खे क़ीमती आभूषणों व ख़जाने को लूट लिया गया था।
मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में, उमय्यद ख़िलाफ़त द्वारा मुल्तान विजय के बाद से, यहॉँ का सूर्य मंदिर, मुस्लिम सरकार के लिए, आय का सबसे बड़ा स्रोत था।
बिन कासिम ने मंदिर के बगल में एक मस्ज़िद भी बनवाई। यह स्थान मुल्तान शहर के बीचोंबीच स्तिथ था। इससे यहाँ काफी भीड़-भाड़ रहती थी।
फिर आयी दसवीं शताब्दी और आ गए ISMILI रुलर्स, BASICALLY ये शिया मुस्लमान थे, तो इन्होने ने क्या किया इन लोगोंने मुहम्मद बिन कासिम द्वारा बनवायी गयी मस्ज़िद को ध्वस्त कर दी और वहाँ अपने स्टाइल की एक नयी मस्ज़िद बना ली।
फ़िर आये महमूद ग़जनवी और तब से लेकर आज तक इस मंदिर पर अनेकों हमले हुए। इसका नामो-निशान मिटाने कई कोशिशें हुई। लेकिन आस्था का पाँच हज़ार साला पुराना यह सबूत आज भी धरती पर मौज़ूद है।