Choti Diwali क्यों मनाई जाती है और क्या है मान्यता?

Choti Diwali kyon manayi jati hai
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हर वर्ष हम Badi Diwali से पहले Choti Diwali मनाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि छोटी दीवली या जिसे नरक चतुर्थी कहते हैं वह क्यों मनाई जाती है। आज हम आपको बताएंगे कि छोटी दिवाली मनाने के पीछे वजह क्या है।

Choti Diwali की मान्यता

Choti Diwali का दिन कर्मफलदाता, धर्मराज यमराज देवता का दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन इनकी पूजा करने से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है और व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

मान्यता के अनुसार घर के सबसे बड़े सदस्य को यम के नाम का एक दीप जलाना चाहिए और इसे पूरे घर में घुमा कर घर से बाहर निकल कर कहीं दूर रख आना चाहिए। कहते हैं इस दीए को घर के सदस्यों को नहीं देखना चाहिए।

इस दिन प्रातः काल स्नान करके भगवान श्री विष्णु भगवान या श्री कृष्ण और राधा जी के दर्शन करने चाहिए। ऐसा करने से उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है।

Choti Diwali मनाए जाने की वजह

रतिदेव नाम के धर्मात्मा प्रवत्ति के एक राजा थे। जिन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी कोई भी काम नहीं किया था। उनके राज्य में सभी लोकेश अपना जीवन व्यतीत करते थे। लेकिन एक दिन ऐसा हुआ जिससे रतिदेव बहुत ज्यादा चिंतित हो गए।

एक दिन यमराज के दूत रतिदेव के सामने अचानक प्रकट हुए। जिसे देख वे अचंभित हो गए और मन में विचार करने लगे कि यह दूत यहां क्यों आए हैं। यह प्रश्न राजा ने यम के दूत से पूछा।

उन दूतों ने बताया कि एक दिन आपके द्वार पर एक भूखा ब्राह्मण आया था और वो भूखा ही आपके द्वार से वापस चला गया। यह उसी पाप कि सजा है कि आपको नर्क की में चलना होगा। यह सुनकर राजा में कहां की है इस बात की मुझे कोई जानकारी नहीं है। मेरी जानकारी में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई मेरे द्वार से भूखा वापस गया हो। अतः आप मुझे प्रायश्चित करने का कुछ समय दीजिए।

रतिदेव राजा धर्मात्मा थे और ये पाप उनसे अनजाने में हुआ था। इसलिए यमदूत उन्हें 12 माह का समय प्रायश्चित करने के लिए दे दिया। इसके बाद राजा ऋषियों के पास गए और मैं अपनी पूरी समस्या बताई।

ऋषियों ने राजा रतिदेव को बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सच्चे मन से व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। इससे आपके द्वारा अनजाने में किए गए पाप से मुक्ति मिल जाएगी। राजा ने ठीक ऐसा ही किया और वह पाप से मुक्त हो गए और नर्क जाने से बच गए। तभी से इस दिन को नरक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

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