आपके आस पास परिवार रिस्तेदार व दोस्तों में ऐसे युवा बड़ी संख्या में होंगे जिन्हें शादी करने में कोई इंट्रेस्ट नहीं है। यदि आप इन युवाओं की लाइफस्टाइल और हेल्थ फैक्टर्स पर गौर करेंगे तो पायेंगे की इनमें से अधिकांश लोगों की रोग प्रतिऱोधक छमता अन्य लोगों की तुलना में काफी कम होती है। इस कारन इन लोगों को संक्रामक बीमारियों के चपेट में आने की सम्भावना ज्यादा होती है।
बार-बार बीमार पड़ने से लोगों की मानसिक स्वास्थ भी प्रभावित होता है। इसे भी एक कारन माना जाता है कि ये लोग अपने लाइफ पार्टनर को लेकर अपने मन में बहुत ज़्यादा रूमानी ख़याल नहीं रख पाते और न ही इनमे लाइफ पार्टनर को लेकर बहुत अधिक आकर्षण होता है। इसलिए ऐसे युवाओं की शादी और रिलेशनशिप में रूचि अन्य युवाओं की तुलना में बहुत कम होती।
स्वीडन में हुआ शोध
हाल ही में कोरोना वायरस पर हुयी एक स्टडी में यह बात एक बार फिर से साबित हो गयी। स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ stockhome में हुए एक हालिया शोध में कोरोना के कारण हुई मौतों और इससे संक्रमित लोगों की आर्थिक, सामाजिक , मानसिक और शारीरिक स्तिथियों सहित जीवन के कई पक्षों को ध्यान में रखते हुए एक अध्यन किया गया। अध्यन में शोधकर्ताओं ने पाया की कोरोना की चपेट में आये हुए लोगों में शादीशुदा लोगों की तुलना में अविवाहित लोगों में मौत का ख़तरा अधिक होता है।
वैज्ञानिकों ने कम पढ़े लिखे और लो इनकम वाले लोगों में कोरोना संक्रमण होने के बाद मृत्यु का ख़तरा अधिक होता है। स्वीडन की स्तिथियों को ध्यान में रखते हुए कोरोना पीड़ितों पर हुए शोध नेचर जर्नल नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
लेकिन स्वीडन में हुयी कोरोना पर इस शोध का मुख्य उद्देश्य था मृतक की आर्थिक स्तिथि का पता लगाना।
हालाँकि भारत में परिस्थितियां अलग हैं यहाँ ज़्यादातर लोग ग़रीब होने के बावज़ूद अपने परिवार से बहुत अच्छा सहयोग व सपोर्ट पाते हैं ।
इन सभी फैक्टर्स के चलते क्या मानसिक रूप से कोई इस तरह की स्तिथि बनती है? कि शादीशुदा लोगों की तुलना में अविवाहितों की मृत्यु की अधिक संभावना होती है। इस सवाल का जवाब देते हुए दिल्ली बेस्ड psychatrist डॉ पल्ल्वी मिश्रा कहती हैं ” सोशल और फॅमिली फैक्टर देखते भारत के लोगों पर हम इस बात को लागू नहीं कर सकते हैं। लेकिन भावात्मक लगाव और देखभाल के आभाव में रोगी की स्तिथि और अधिक बढ़ जाती है।
क्यूँकि हमारे देश में आमतौर पे फैमिली बांड बड़ा अच्छा होता है और रोगी की पूरी देखभाल होती है। लेकिन एजुकेशन का स्तर अच्छा न होने के कारण, जागरूकता कमी और निम्न वर्ग से ताल्लुख रखने के कारण इलाज में हुई देरी को जरूर हम अपने समाज के लोगों पर लागू करके देख सकते हैं। कोरोना संक्रमण की गिरफ़्त में आने के बाद मरने वाले रोगियों के बैकग्राउंड में ये बड़ा रोल प्ले कर सकते हैं इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।