मशहूर संगीतकार रफी साहब की इस गाने के बाद हुई थी आवाज ख़राब

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मशहूर संगीतकार रफ़ी साहब जिनका नाम किसी पहचान का मौहताज नहीं। आपको बता दे की आज हिंदी सिनेमा के सुरों के बेताज बादशाह मोहम्‍मद रफी का जन्मदिन है। आज भी रफी साहब के गाने काफी लोकप्रिय हैं। एक ऐसा फनकार जिसे आज भी लोग उनके गानों के माध्यम से याद करते हैं। रफ़ी साहब ने हिंदी के अलावा असामी, कोंकणी, भोजपुरी, ओड़िया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, माघी, मैथिली, उर्दू, के साथ साथ इंग्लिश, फारसी, अरबी और डच भाषाओं में भी गीत गाए हैं।

कई भाषाओं में गए गाने

आज हम आपको उनकी जिंदगी से जुडी एक खास बात बतायेगे। रफ़ी साहब की जिंदगी में एक बार ऐसा हादसा हुआ था की लोगो को लगा की अब वे कभी भी रफ़ी साहब की आवाज नहीं सुन पाएंगे। रफ़ी का बैजू बावरा फ़िल्म का गाना ‘ऐ दुनिया के रखवाले’ इस गाने के लिए उन्होंने 15 दिन तक रियाज़ किया था और रिकॉर्डिंग के बाद उनकी आवाज़ इस हद तक बेकार हो गई की कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि रफ़ी शायद कभी अपनी आवाज़ वापस नहीं पा सकेंगे।

इस गाने के बाद रफ़ी की आवाज हुई ख़राब

लेकिन ऐसा नहीं हुआ रफ़ी ने लोगों को ग़लत साबित किया और भारत के सबसे लोकप्रिय पार्श्वगायक बने। 4 फ़रवरी 1980 को श्रीलंका के स्वतंत्रता दिवस पर मोहम्मद रफ़ी को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक शो के लिए आमंत्रित किया गया था। उस दिन उनको सुनने के लिए 12 लाख कोलंबोवासी जमा हुए थे। जो उस समय का विश्व रिकॉर्ड था। श्रीलंका के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने और प्रधानमंत्री प्रेमदासा उद्घाटन के तुरंत बाद किसी और कार्यक्रम में भाग लेने जाने वाले थे। लेकिन रफ़ी के ज़बर्दस्त गायन ने उन्हें रुकने पर मजबूर कर दिया और वह कार्यक्रम ख़त्म होने तक वहां से हिले नहीं।

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1 रुपये लेकर गया था गीत

मोहम्‍मद रफी का जन्‍म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के कोटला सुल्‍तान सिंह गांव में हुआ था। मोहम्मद रफी जैसे दयालु इंसान काफी कम ही होते हैं। वह कभी भी संगीतकार से ये नहीं पूछते थे कि उन्हें गीत गाने के लिए कितना पैसा मिलेगा। वह सिर्फ आकर गीत गा दिया करते थे और कभी-कभी तो 1 रुपये को लेकर भी गीत उन्होंने गाया है।

जाते जाते ये संगीत दे गए

मोहम्मद रफी ने किशोर कुमार की फिल्मों के लिए भी गीत गाये हैं जिनमें फिल्म ‘बड़े सरकार’, ‘रागिनी’ और कई फिल्‍में शामिल थीं. रफी ने किशोर कुमार के लिए करीब 11 गाने गाए। मोहम्मद रफी का आखिरी गीत फिल्म ‘आस पास’ के लिए था, जो उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए अपने निधन से ठीक दो दिन पहले रिकॉर्ड किया था। गीत के बोल थे ‘शाम फिर क्यों उदास है दोस्त’

इस फिल्म के साथ हुए मशहूर

हिन्‍दी सिनेमा के शुरुआती दौर में सिर्फ मुकेश जी और तलत मेहमूद का नाम हुआ करता था। तब रफी को कोई नहीं जानता था। लेकिन जब नौशाद ने फिल्म ‘बैजू बावरा’ के लिए रफी को मौका दिया तो उन्होंने कहा था की इस फिल्म के साथ ही तुम सबकी जुबां पर छा जाओगे और वही हुआ। 6 फिल्मफेयर और 1 नेशनल अवार्ड रफी के नाम हैं। उन्हें भारत सरकार कि तरफ से ‘पद्म श्री’ सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। रफी साहब ने भारतीय भाषाओं जैसे असामी,कोंकणी,पंजाबी,उड़िया,मराठी,बंगाली,भोजपुरी के साथ-साथ उन्होंने पारसी,डच,स्पेनिश और इंग्लिश में भी गीत गाए थे।

उनके जाने पर इंसानो के साथ बादल भी रोये

मोहम्मद रफी को दिल का दौरा पड़ने की वजह से 31 जुलाई 1980 को देहांत हो गया। खबरों के अनुसार उस दिन जोर की बारिश हो रही थी। कहा जाये तो इंसानो साथ बादलों ने भी रफी साहब के देहांत का शोक मनाया था। रफी साहब के देहांत पर मशहूर गीतकार नौशाद ने लिखा, ‘गूंजते हैं तेरी आवाज अमीरों के महल में, झोपड़ों की गरीबी में भी है तेरे साज, यूं तो अपनी मौसिकी पर सबको फक्र होता है, मगर ए मेरे साथी मौसिकी को भी आज तुझ पर नाज है।

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